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दोहे

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रोक रखा है मोह ने, मोक्ष महल का द्वार । बिन त्यागे इस कर्म को, कैसे हो उद्धार ।। जैसे जाता है 'विनय', ज्ञान निकट वैराग्य । वैसे तेरा कब उदय, जाने होगा भाग्य ।। सच होकर भी मैं 'विनय', हारा हूँ हर ...

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लेखक के बारे में
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Vinay Jain 'Anand'

जो नहीं था पास मेरे नाम वो अपना लिया दुख भरे जीवन में यूँ "आनन्द' देखो पा लिया विनय जैन "आनन्द' विनय जैन "आनन्द' विनय जैन S/O राजेन्द्र जी जैन, पालोदा- बांसवाड़ा ( राज. ) माता - शुशीला देवी बहनें - डिंपल, हर्षिता, मेघा 9460245606

समीक्षा
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    Krishna Shukla
    29 जुलाई 2023
    करो बकालत तुम प्रभु आप लगा दो पार बहुत सुन्दर अभिलाषा बधाई 🌹🙏👌👍
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    Krishna Shukla
    29 जुलाई 2023
    करो बकालत तुम प्रभु आप लगा दो पार बहुत सुन्दर अभिलाषा बधाई 🌹🙏👌👍