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दोहे

4.5
544

लख माटी की मूर्तियाँ, कह बैठे जगदीश। मूर्तिकार के हाथ ने, किसे बनाया ईश।। रोजी-रोटी की फिकर, लायी देख विदेश। तन में, मन में, नयन में, बसता अपना देश।। हे दिल्ली के देवता, करो वोट स्वीकार। हम सेवक हैं ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    09 জানুয়ারী 2019
    बहुत सुंदर
  • author
    Dr Ashwini Shukla
    27 সেপ্টেম্বর 2018
    शोभनम
  • author
    Nanak Chand
    07 ফেব্রুয়ারি 2020
    चंचल चितवन, चपल चित, चलत चलावन चाल,। अधर पुष्प, नैनंन कमल, केश समान व्याल।। "नानक" अमन जी, धन्यवाद कभी हमारी रचना पढ़ने का कष्ट करें। 🙏🙏
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    09 জানুয়ারী 2019
    बहुत सुंदर
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    Dr Ashwini Shukla
    27 সেপ্টেম্বর 2018
    शोभनम
  • author
    Nanak Chand
    07 ফেব্রুয়ারি 2020
    चंचल चितवन, चपल चित, चलत चलावन चाल,। अधर पुष्प, नैनंन कमल, केश समान व्याल।। "नानक" अमन जी, धन्यवाद कभी हमारी रचना पढ़ने का कष्ट करें। 🙏🙏