pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

दोहरी भूमिका

4.5
9558

शाम के करीब छह बजे का समय हुआ था । आज तो ओफिस में बास ने एक घंटे हम सबके दिमाग की दही बना दी। ना जाने किते महीनों कि भड़ास जमा कर रखी थी बास ने अपने अंदर जो आज सारी उढ़ेल दी हमपर । शायद आज का दिन ही खराब था। एक तो सुबह -सुबह ही आज गैस भी खत्म हो गई, चाय तक नहीं पी पायी थी घर पर । गैस वाले को फोन कर दिया था वो दे गया होगा गैस। फोन भी नहीं कर पायी थी मम्मी को । अब कर लेती हूँ फोन मम्मी को । बस स्टॉप पर बैठते हुए पर्स से मोबाइल निकाला मैंने। अरे ! ये क्या ? इते सारे मिस्ड कॅाल्स मम्मी के ? आखिर क्या ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Mamta Upadhyay
    25 सितम्बर 2019
    बहुत अच्छी स्टोरी 👌👌
  • author
    Rajendra Gulechha
    23 जुलाई 2016
    कहानी के पटाक्षेप में विकी को दिया गया जवाब बहुत ही खास एवं उचित बन पड़ा है| सुंदर लेखन के लिए आप बधाई की पात्र है| हमेशा ऐसे ही लिखते रहिए और मुझे लिंक लेते रहिएगा| -राजेंद्र गुलेच्छा
  • author
    Manoj Sharma
    08 जुलाई 2016
    आप ने बहुत खूब लिखा है। बहुत दिनों बाद कोई कहानी पडी और वह भी अतिसुन्दर। भगवान् आप को सदा खुश रखें।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Mamta Upadhyay
    25 सितम्बर 2019
    बहुत अच्छी स्टोरी 👌👌
  • author
    Rajendra Gulechha
    23 जुलाई 2016
    कहानी के पटाक्षेप में विकी को दिया गया जवाब बहुत ही खास एवं उचित बन पड़ा है| सुंदर लेखन के लिए आप बधाई की पात्र है| हमेशा ऐसे ही लिखते रहिए और मुझे लिंक लेते रहिएगा| -राजेंद्र गुलेच्छा
  • author
    Manoj Sharma
    08 जुलाई 2016
    आप ने बहुत खूब लिखा है। बहुत दिनों बाद कोई कहानी पडी और वह भी अतिसुन्दर। भगवान् आप को सदा खुश रखें।