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दो रास्ते

4.2
69259

शाम के 5 बज गये थे और बनारस से लखनऊ जाने वाली ट्रैन प्लेटफार्म पर लग गयी थी और मैं भारी मन से बैठे भी गया था लेकिन मेरा ध्यान तो उस चेहरे की तरफ था जिसको स्टेशन की भीड़ मै एक झलक भर देखी थी | मुझे ...

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अमित राय
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    daya kaur
    27 ഫെബ്രുവരി 2021
    समाज के खोखले रीति रिवाजों को छोड़ कर एक असहाय के दुःख को समझ कर साथ देना मुझे बहुत अच्छा लगा
  • author
    ishiii
    07 ജൂണ്‍ 2017
    achi h stry.. unka milna likha ta.. phle na shi..baad m.mil hi gye ..
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    daya kaur
    27 ഫെബ്രുവരി 2021
    समाज के खोखले रीति रिवाजों को छोड़ कर एक असहाय के दुःख को समझ कर साथ देना मुझे बहुत अच्छा लगा
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    ishiii
    07 ജൂണ്‍ 2017
    achi h stry.. unka milna likha ta.. phle na shi..baad m.mil hi gye ..