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दीवार

3.6
385

बर्लिन की दीवार कब की तोड़ी जा चुकी थी लेकिन मेरा पड़ोसी फिर भी अपने घर की चारदीवारी डेढ़ हाथ ऊँची कर रहा था पता चला कि वह उस ऊँची दीवार पर काँच के टुकड़े बिछाएगा और फिर उस दीवार पर कँटीली तारें भी ...

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समीक्षा
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 ऑक्टोबर 2015
    ख़याल जैसे शब्द राष्ट्र भाषा की पकड़ व सम्मान दर्शा रहे हैं ।अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 ऑक्टोबर 2015
    ख़याल जैसे शब्द राष्ट्र भाषा की पकड़ व सम्मान दर्शा रहे हैं ।अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।