कक्षा 9 में पढ़ने वाली दिपाली का कल बायो का वायवा है , वो बहुत घबराई हुई है , दिपाली की माँ ने दिपाली के घबराहट का कारण पूछा तो उसने कहा - मम्मी कल वायवा है ना ... इसलिए घबराहट हो रही है ...
किशोर मन की अवस्था का यथार्थ चित्रण करती पूर्ण सार्थक कहानी👌👌👌 दीपाली के मन की ऊहापोह आज की हर उस किशोरी की स्थिति है जो घर से बाहर ऐसे मजनुओं की कुत्सित चेष्टाओं और फिकरे बाज़ी से त्रस्त हैं।
लगता है आपने किशोरावस्था मनोविज्ञान का बहुत अच्छा अध्ययन किया है। लड़की अपने घरवालों की सुरक्षा के प्रति भी कितनी सजग है, बहुत अच्छी प्रेरणा देती है 👌👌👌 जिन घटनाओं का हमारे मन पर गहरा प्रभाव रहता है या जो उलझने हमें बहुत अंदर तक प्रभावित करती हैं उनके समाधान हमें सपनों के माध्यम से बहुत बार मिलते हैं। नायिका का अखबार में खबर पढ़कर दृढ़ संकल्प लेना कि वह भी अब नहीं घबराएगी और किसी भी विकट परिस्थिति का डटकर मुकाबला करेगी, ऐसा संदेश देता है जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत है।
परसों संध्या बख्शी की कहानी पढ़ी थी। उसकी अगली कड़ी में पूनम अग्रवाल जी की कविता पढ़ी। और आज आपकी दीपाली ने अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करवाया है।
आप की कहानियां मात्र मनोरंजन नहीं करती बल्कि एक साहित्यकार का धर्म निभाते हुए कोई संदेश अवश्य देती हैं। बहुत-बहुत सार्थक सृजन 👌👌👌👌💯⭐⭐⭐⭐
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उत्कृष्ट कहानी ! कहानी ही नहीं वरन यह ऐसी सच्चाई है जिससे स्कूल जाने वाली ही नहीं वरन् घर से बाहर कदम रखने वाली अधिकांश किशोरियां, युवतियां तथा महिलाएं दो-चार होती हैं । सड़कछाप मजनुओं का आसान शिकार स्कूली बच्चियाँ होती हैं, उन्हें लगता है कि इन्हें आसानी से पुचकारा, बहलाया-फुसलाया तथा जरुरत पड़ने पर डराया धमकाया भी जा सकता है । दूसरी बात लड़कियों द्वारा लाज शर्म तथा अज्ञानता के चलते छेड़छाड़ की घटनाओं के प्रति चुप्पी साध लेना, परिजनों अथवा टीचर्स को जानकारी न देना, ऐसे मवालियों का हौसला बुलंद करती है । यदि उनकी भलीभांति ठुकाई हो जैसा कि कहानी में हुई है तो पीछा करने तथा छेडख़ानी करने वाले के सिर से इश्क का भूत उतरेगा ही बल्कि दस और लोगों को सबक भी मिलेगा । दीपाली का देखा सपना साकार हुआ चाहे जिसके भी किया हो हुआ, यह बड़ी बात है । इसके अतिरिक्त किशोरियों तथा युवतियों को यह भी ध्यान देने की जरुरत है कि जो शख्स उसे मछली समझकर चारा डाल रहा है उसके लिए वही अकेली मछली नहीं है । उसके लिए जाल में फंसने के लिए तैयार अनेक मछलियों में से वह सिर्फ एक है । कहानी का यह संदेश ग्रहणीय है । बेहद शिक्षाप्रद तथा मजनुओं को सबक सिखाने को प्रेरित करती हुई यह कहानी मन को बहुत बहुत भाई ।। उत्कृष्ट कहानी हेतु आपको बहुत बहुत बधाई !!!
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स्कूल जाने वाली किशोरवय लड़कियोंके जीवन की कटु सच्चाई है जिसका सामना लगभग हर लड़की को करना पड़ जाता है ।असंस्कारी लड़के जिनके जीवन का कोइ लक्ष्य नहीं रहता वे इसी तरह अपना समय व्यतीत करते हैं।किशोरावस्था की मानसिक अवस्था का बहुत अच्छा चित्रण किया है ।पिता और भाइयों की सुरक्षा की चिंता करने के कारण लड़कियां घर पर कुछ न बता कर स्वयं ही सब झेलती रहतीहैं । जिस चिंता को लेकर दीपाली सोई थी वही उसे स्वप्न में दिखाई दिया ।इस बार उसने लड़के का डट कर मुकाबला किया ।दीपाली ने पेपर में छपे समाचार और उस लड़के की फोटो को पहचान कर दृढ़ता का अनुभव किया ।अगर कोई दूसरी लड़की इन मजनुओं को सबक सिखा सकती है तो वह भी उसका सामना कर सकती है ।दृढ़ निश्चय के साथ दीपाली निश्चिंत हो वायवा के लिए चल दी ।।
ई
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किशोर मन की अवस्था का यथार्थ चित्रण करती पूर्ण सार्थक कहानी👌👌👌 दीपाली के मन की ऊहापोह आज की हर उस किशोरी की स्थिति है जो घर से बाहर ऐसे मजनुओं की कुत्सित चेष्टाओं और फिकरे बाज़ी से त्रस्त हैं।
लगता है आपने किशोरावस्था मनोविज्ञान का बहुत अच्छा अध्ययन किया है। लड़की अपने घरवालों की सुरक्षा के प्रति भी कितनी सजग है, बहुत अच्छी प्रेरणा देती है 👌👌👌 जिन घटनाओं का हमारे मन पर गहरा प्रभाव रहता है या जो उलझने हमें बहुत अंदर तक प्रभावित करती हैं उनके समाधान हमें सपनों के माध्यम से बहुत बार मिलते हैं। नायिका का अखबार में खबर पढ़कर दृढ़ संकल्प लेना कि वह भी अब नहीं घबराएगी और किसी भी विकट परिस्थिति का डटकर मुकाबला करेगी, ऐसा संदेश देता है जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत है।
परसों संध्या बख्शी की कहानी पढ़ी थी। उसकी अगली कड़ी में पूनम अग्रवाल जी की कविता पढ़ी। और आज आपकी दीपाली ने अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करवाया है।
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स्कूल जाने वाली किशोरवय लड़कियोंके जीवन की कटु सच्चाई है जिसका सामना लगभग हर लड़की को करना पड़ जाता है ।असंस्कारी लड़के जिनके जीवन का कोइ लक्ष्य नहीं रहता वे इसी तरह अपना समय व्यतीत करते हैं।किशोरावस्था की मानसिक अवस्था का बहुत अच्छा चित्रण किया है ।पिता और भाइयों की सुरक्षा की चिंता करने के कारण लड़कियां घर पर कुछ न बता कर स्वयं ही सब झेलती रहतीहैं । जिस चिंता को लेकर दीपाली सोई थी वही उसे स्वप्न में दिखाई दिया ।इस बार उसने लड़के का डट कर मुकाबला किया ।दीपाली ने पेपर में छपे समाचार और उस लड़के की फोटो को पहचान कर दृढ़ता का अनुभव किया ।अगर कोई दूसरी लड़की इन मजनुओं को सबक सिखा सकती है तो वह भी उसका सामना कर सकती है ।दृढ़ निश्चय के साथ दीपाली निश्चिंत हो वायवा के लिए चल दी ।।
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