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दिल का गुब्बार

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दिल का गुब्बारा कुछ यूं फटा उङेल गया बीती घटा रुकें कदमों कि थमें दिल कि बता गया खता ‍ क्या करुँ साहब मुझे दुनियादारी नहीं आती मन में फरैब जीभ पर मीठी वाणी नहीं आती लाख कोशिश कि मगर चौगा ...

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लेखक के बारे में
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GOKLA RAM

।। विशुद्ध संस्कारी बाळक ।।

समीक्षा
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  • author
    15 जनवरी 2020
    सुन्दर भाऊ
  • author
    bhagirath choudhary
    14 जनवरी 2020
    सुन्दर प्रस्तुति
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    15 जनवरी 2020
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    14 जनवरी 2020
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