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धुआं

4.4
11192

सीढि़यां पार कर वह ऊपर पहुँचा तो दूर से ही अम्मा की झलक दिखाई दे गई। वहीं से वह चिल्लाया, ‘‘अम्मा, राम.राम!’’ अम्मा का झुर्रियों से भरा चेहरा ऊपर उठा। ‘‘कौन मुकुल है क्या?’’ और उसके साथ ही एक मीठी ...

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लेखक के बारे में
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उद्भ्रांत
समीक्षा
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  • author
    Brijesh Kumar
    29 दिसम्बर 2019
    समाज ओर माता का दर्द ना बहुत अच्छी तरह से ब्यान किया गया है।
  • author
    bhola kumar nishad
    21 अक्टूबर 2017
    nice
  • author
    21 जनवरी 2020
    बन्धुवर बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद।संवेदनशील और भावनापूर्ण कहानी है जिसे बहुत सीधे सादे शब्दों में लिखा गया है। मां की ममता ही ऐसी होती है कि वह अपने बच्चों से दूर होकर छटपटाने लगती है।वह भूख,गरीबी,अभाव सब कुछ सह सकती है ।किंतु बच्चों से दूरी पर वह बेचैन रहती है। ममता और करूणा ही नारी की विवशता और विशेषता है।इसीलिए सब कष्ट सहन करके भी वह महान है।लेखक को बधाई और शुभकामनाएं।
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    Brijesh Kumar
    29 दिसम्बर 2019
    समाज ओर माता का दर्द ना बहुत अच्छी तरह से ब्यान किया गया है।
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    bhola kumar nishad
    21 अक्टूबर 2017
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    21 जनवरी 2020
    बन्धुवर बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद।संवेदनशील और भावनापूर्ण कहानी है जिसे बहुत सीधे सादे शब्दों में लिखा गया है। मां की ममता ही ऐसी होती है कि वह अपने बच्चों से दूर होकर छटपटाने लगती है।वह भूख,गरीबी,अभाव सब कुछ सह सकती है ।किंतु बच्चों से दूरी पर वह बेचैन रहती है। ममता और करूणा ही नारी की विवशता और विशेषता है।इसीलिए सब कष्ट सहन करके भी वह महान है।लेखक को बधाई और शुभकामनाएं।