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धोखा

4.6
149116

भूमि रसोई में काम करती जा रही थी और भुनभुनाती जा रही थी। वरूण ने हद कर दी चार पांच घंटे पहले बता रहा है वह पंद्रह बीस मेहमानों को रात के खाने पर बुला रहा है। आज भूमि ने निश्चय कर लिया था वह वरूण ...

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लेखक के बारे में
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सीमा जैन

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समीक्षा
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  • author
    Preeti Arora
    10 മാര്‍ച്ച് 2019
    सही किया है भूमि ने, गलत को गलत कहना जरूरी है पुरूष अपने दम्भ में पत्नी को गुलाम समझने लगता है।
  • author
    Archana Verma
    15 മാര്‍ച്ച് 2021
    सबसे तो बड़ी बात यह है कि मध्यमवर्गीय औरते भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो जाती है कि कोई भी सही फैसला लेने में दिक्कत होती हैं। बढ़ते बच्चो का भविष्य... घर की आर्थिक स्थिति... कोई सहायता नही करता... नही मायके में... ना ही ससुराल में... सब समझौता करने को बाध्य कर देते हैं। कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि 80%शादियां इस बिना किसी लिखित समझौते के तहत ही चल रही है।
  • author
    पाण्डेय अनिक
    05 ഫെബ്രുവരി 2018
    वरुण व माया जैसों का प्रारब्ध यही होना चाहिए - न घर के न घाट के। माया जैसी तो पिस कर रह जाती है। यहां तो स्वसुर ने कुछ साथ दे दिया। वास्तविकता में वह भी नसीब नहीं होता। साथ ऐसे कमीने व पैसे वाले लोग हार को जीत बनाना खूब जानते हैं।
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    Preeti Arora
    10 മാര്‍ച്ച് 2019
    सही किया है भूमि ने, गलत को गलत कहना जरूरी है पुरूष अपने दम्भ में पत्नी को गुलाम समझने लगता है।
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    Archana Verma
    15 മാര്‍ച്ച് 2021
    सबसे तो बड़ी बात यह है कि मध्यमवर्गीय औरते भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो जाती है कि कोई भी सही फैसला लेने में दिक्कत होती हैं। बढ़ते बच्चो का भविष्य... घर की आर्थिक स्थिति... कोई सहायता नही करता... नही मायके में... ना ही ससुराल में... सब समझौता करने को बाध्य कर देते हैं। कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि 80%शादियां इस बिना किसी लिखित समझौते के तहत ही चल रही है।
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    पाण्डेय अनिक
    05 ഫെബ്രുവരി 2018
    वरुण व माया जैसों का प्रारब्ध यही होना चाहिए - न घर के न घाट के। माया जैसी तो पिस कर रह जाती है। यहां तो स्वसुर ने कुछ साथ दे दिया। वास्तविकता में वह भी नसीब नहीं होता। साथ ऐसे कमीने व पैसे वाले लोग हार को जीत बनाना खूब जानते हैं।