भूमि रसोई में काम करती जा रही थी और भुनभुनाती जा रही थी। वरूण ने हद कर दी चार पांच घंटे पहले बता रहा है वह पंद्रह बीस मेहमानों को रात के खाने पर बुला रहा है। आज भूमि ने निश्चय कर लिया था वह वरूण ...
सबसे तो बड़ी बात यह है कि मध्यमवर्गीय औरते भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो जाती है कि कोई भी सही फैसला लेने में दिक्कत होती हैं।
बढ़ते बच्चो का भविष्य... घर की आर्थिक स्थिति...
कोई सहायता नही करता...
नही मायके में... ना ही ससुराल में...
सब समझौता करने को बाध्य कर देते हैं।
कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि 80%शादियां इस बिना किसी लिखित समझौते के तहत ही चल रही है।
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वरुण व माया जैसों का प्रारब्ध यही होना चाहिए - न घर के न घाट के। माया जैसी तो पिस कर रह जाती है। यहां तो स्वसुर ने कुछ साथ दे दिया। वास्तविकता में वह भी नसीब नहीं होता। साथ ऐसे कमीने व पैसे वाले लोग हार को जीत बनाना खूब जानते हैं।
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