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धंधा

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8628

पिताजी को रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर छोड़कर रचित जैसे ही बाहर निकला ,साइकिल स्टैंड के पास लोगो का जनसमूह देखकर ठिठक गया | मन में उपजी उत्सुकता के वशीभूत, उसके कदम अनायास उस तरफ चल पड़े | वहा ...

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लेखक के बारे में
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बी के दीक्षित

उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के ग्राम जिगना दीक्षित में श्रीमती रामायणी देवी और श्री राम बसंत दीक्षित के प्रथम संतान के रूप में पावन भारतभूमि से मेरा प्रथम साक्षात्कार हुआ | स्नातक की शिक्षा अपने ही जिले प्राप्त कर मैंने स्नातकोत्तर की शिक्षा हेतु गोरखपुर में पदार्पण किया और सेवा में आने तक गुरु गोरक्षनाथ जी की पवित्र भूमि के सानिध्य में रहा | साहित्य में मेरी बचपन से ही रुचि थी मगर विज्ञान वर्ग का छात्र होने के कारण साहित्य साधना पर ज्यादे ध्यान नहीं दे पाया | केंद्रीय विद्यालय में अध्यापन के दौरान आवश्यकतानुसार विज्ञान लघु-नाटिका लिखने से मैंने अपने साहित्य जीवन की शुरुआत की जो बाद संस्मरण से होते हुए कहानी और कविता लेखन तक पहुच गयी | मई २०१७ में प्रतिलिपि का साथ मिलने पर लेखन में गंभीरता आ गयी | प्रतिलिपि के मंच के अलावा मेरी रचनाये कुछ समाचार पत्रों, पत्रिकाओ में भी सराही गयी है |इस दौरान मेरे छात्रो, शिक्षक बंधुओ ,मित्रो एवं प्रतिलिपि के पाठको का का जो साथ मिला वह सराहनीय है | आशा है आप अपना प्रेम इसी तरह बरकरार रखेगे और मनोबल बढाने में सहायक होगे | बृज

समीक्षा
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    Mohit Malik
    11 ऑक्टोबर 2017
    ये कहना गलत होगा की उसका फैसला उचित नही था, माना दुनिया धोखेबाजों से भरी पड़ी है पर इसका ये मतलब नही की आप ज़रूरतमंद लोगों को भी उसी केटेगरी में रखें। हां थोड़ी सावधानी की ज़रूरत है बस।
  • author
    Rajnee Singh
    17 डिसेंबर 2019
    एक इंसान के गलत हो जाने से मदद न करने का फैसला करना बिल्कुल गलत है।
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    20 सप्टेंबर 2019
    ढ़ोंग या असलियत में भेद करना कई बार मुश्किल होता है फिर भी जीवन के अनुभव व्यक्ति की असलियत पता करने में मददगार साबित होते हैं । आपकी रचना एक दुखद पहलू को इंगित करती है ।
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    Mohit Malik
    11 ऑक्टोबर 2017
    ये कहना गलत होगा की उसका फैसला उचित नही था, माना दुनिया धोखेबाजों से भरी पड़ी है पर इसका ये मतलब नही की आप ज़रूरतमंद लोगों को भी उसी केटेगरी में रखें। हां थोड़ी सावधानी की ज़रूरत है बस।
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    Rajnee Singh
    17 डिसेंबर 2019
    एक इंसान के गलत हो जाने से मदद न करने का फैसला करना बिल्कुल गलत है।
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    विजय सिंह "बैस"
    20 सप्टेंबर 2019
    ढ़ोंग या असलियत में भेद करना कई बार मुश्किल होता है फिर भी जीवन के अनुभव व्यक्ति की असलियत पता करने में मददगार साबित होते हैं । आपकी रचना एक दुखद पहलू को इंगित करती है ।