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ढाई बजे की बस

4.2
49957

इतनी रात का सफर किसे अच्छा लगता है भला? मगर क्या किया जाए? वहाँ के लिए बस ही रात को दो बजे के बाद मिलती है। वह भी इस शहर से नहीं बल्कि दूसरे शहर जाकर। यह तो वैसे भी कोई शहर नहीं है, कस्बा है कस्बा। ...

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लेखक के बारे में

प्रकाशित पुस्तकें:- कविता संग्रह- क्योंकि मैं औरत हूँ कहानी संग्रह- समुद्र की रेत, मन का मनका फेर, सात दिन की माँ उपन्यास- अबकी नौकरी छोड़ दूँगी, सिंहासन का शीशा

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Jatin Kant Singh
    15 जानेवारी 2019
    Ajeeb si story h Kuch sawaal chor gayi jaise aisa kaun sa jaruri kaam tha Jo Rekha subah nhi gayi???kaise parents the Jo akele ladki Ko jaane diya??kaisa NGO tha Jo employees ki security ka dhyaan nhi rakhta???etc etc etc
  • author
    Rucha Dingiya
    17 फेब्रुवारी 2019
    अच्छी है पर इससे आआगे भी बनाओ ओर वे औरते क्यों रो रही थी क्या था उस ढाई बजे की बस का रहस्य ,,,,
  • author
    Ankit Maharshi
    09 एप्रिल 2018
    लाजवाब।हॉरर का नया तरीका
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    Jatin Kant Singh
    15 जानेवारी 2019
    Ajeeb si story h Kuch sawaal chor gayi jaise aisa kaun sa jaruri kaam tha Jo Rekha subah nhi gayi???kaise parents the Jo akele ladki Ko jaane diya??kaisa NGO tha Jo employees ki security ka dhyaan nhi rakhta???etc etc etc
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    Rucha Dingiya
    17 फेब्रुवारी 2019
    अच्छी है पर इससे आआगे भी बनाओ ओर वे औरते क्यों रो रही थी क्या था उस ढाई बजे की बस का रहस्य ,,,,
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    Ankit Maharshi
    09 एप्रिल 2018
    लाजवाब।हॉरर का नया तरीका