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देश के प्रति

4.8
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1. कश्मीर सिसकता बंदूकों से,माहौल नहीं है बातों का, आर-पार का जंग करो, अब ठौर नहीं जज्बातों का। कितने वर्षों से ही तो,सबूतों का दौर चला, जब-जब ऐसी बात हुई,फिर एक घर कहीं और जला। बार-बार हर बार वही, ...

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लेखक के बारे में
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अमरेश गौतम

कवि/पात्रोपाधि अभियन्ता

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Asha Shukla ""Asha""
    17 ജനുവരി 2019
    बहुत सही! हकीकत बयां कर दी ।शानदार और जानदार।
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    01 നവംബര്‍ 2019
    अत्यन्त ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
  • author
    13 ഡിസംബര്‍ 2018
    सच कहा आपने
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    Asha Shukla ""Asha""
    17 ജനുവരി 2019
    बहुत सही! हकीकत बयां कर दी ।शानदार और जानदार।
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    01 നവംബര്‍ 2019
    अत्यन्त ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
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    13 ഡിസംബര്‍ 2018
    सच कहा आपने