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देश

4.7
309

हरित धरती , थिरकतीं नदियाँ , हवा के मदभरे सन्देश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। भावनाओं , संस्कृति के प्राण हो , जीवन कथा हो , मनुजता के अमित सुख , तुम अनकही अंतर्व्यथा हो , प्रेम, ...

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समीक्षा
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  • author
    Fanindra Kumar
    16 अक्टूबर 2015
    'सिर्फ तुम भूखंड की सीमा  नहीं हो देश "...............सच  है  जहाँ-जहाँ तक  इसकी  संस्कृति का  विस्तार  होगा वहां  तक  देश  को याद  क्या  जाएगा. अति  सुंदर  मनोहर  रचना.
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    "पूरव " जैसे शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान को अच्छी तरह दर्शा  रहे हैं । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    Navneet Rai
    16 अक्टूबर 2015
    'सिर्फ तुम भूखंड की सीमा  नहीं हो देश "....बेहद उम्दा रचना  . पूज्यवर  ,  हार्दिक बधाई  . सादर नमन  . 
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    Fanindra Kumar
    16 अक्टूबर 2015
    'सिर्फ तुम भूखंड की सीमा  नहीं हो देश "...............सच  है  जहाँ-जहाँ तक  इसकी  संस्कृति का  विस्तार  होगा वहां  तक  देश  को याद  क्या  जाएगा. अति  सुंदर  मनोहर  रचना.
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    "पूरव " जैसे शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान को अच्छी तरह दर्शा  रहे हैं । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    Navneet Rai
    16 अक्टूबर 2015
    'सिर्फ तुम भूखंड की सीमा  नहीं हो देश "....बेहद उम्दा रचना  . पूज्यवर  ,  हार्दिक बधाई  . सादर नमन  .