हरित धरती , थिरकतीं नदियाँ , हवा के मदभरे सन्देश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। भावनाओं , संस्कृति के प्राण हो , जीवन कथा हो , मनुजता के अमित सुख , तुम अनकही अंतर्व्यथा हो , प्रेम, ...
'सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश "...............सच है जहाँ-जहाँ तक इसकी संस्कृति का विस्तार होगा वहां तक देश को याद क्या जाएगा. अति सुंदर मनोहर रचना.
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