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दीवाना

4.1
1960

जिंदगी भर तेरी बांहों में मैं रहूँ. आँखों से प्यार का जाम पीता रहूँ अश्क हो या हँसी, साथ शामिल हो हम साथ ही मैं मरुँ, साथ जीता रहूँ || तेरे ख्वाबों को सारे सजा मैं सकूँ जिंदगी में तेरी भर दूँ सारे ...

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लेखक के बारे में

रणजीत प्रताप सिंह प्रतिलिपी के सह-संस्थापक हैं, उन्होने कमप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग एवम एम.बी.ए भी किया हुआ है। प्रतिलिपी से पहले वे सिटी बैंक(Citibank) एवम वोदाफोन(Vodafone) में काम कर चुके हैं। लेकिन इन सबसे अधिक वे अपने आप को एक पाठक के तौर पर पहचानते हैं, वे लेखक या रचनाकार बिल्कुल नहीं, लेकिन कभी कभी चंद पंक्तियां लिख देते हैं।

समीक्षा
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  • author
    तितली
    30 जनवरी 2017
    Wowww
  • author
    रिया अम्बष्टा
    21 मार्च 2021
    Wowwwww sir bahut accha likha hai aapne
  • author
    गौरी शुक्ला
    06 मार्च 2018
    nice.शब्दों में विराम का ध्यान रखें।
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    तितली
    30 जनवरी 2017
    Wowww
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    रिया अम्बष्टा
    21 मार्च 2021
    Wowwwww sir bahut accha likha hai aapne
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    गौरी शुक्ला
    06 मार्च 2018
    nice.शब्दों में विराम का ध्यान रखें।