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दायित्वों का निर्वाह

4.2
7281

दफ्तर से निकलते हुए सुधीर ने कलाई घडी पर नज़र डाली ,5 बज चुके थे । सुलोचना आज बहुत नाराज़ होगी । सुबह ऑफिस जाने के लिये जब वह तैयार हो रहा था तो कितने प्यार से गले में बाहें डाल उसने कहा था , " देखिये ...

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लेखक के बारे में

लखनऊ में जन्मी व लखनऊ विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त डॉ निर्मला सिंह विज्ञानं से स्नातक स माजशास्त्र से परास्नातक ,बी.० एड ,डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त विगत में प्राध्यापक के रूप में शिक्षण से जुडी रही हैं ....| प्रख्यात अस्थि रोग विशेषग्य डा ओ . पी सिंह की पत्नी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के साथ ही सामाजिक गति विधियों में भाग लेने के साथ ही लेखन में संलग्न रही हैं | भा .ले .परिषद् , अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था , कादम्बिनी परिषद् , विद्द्योत्त्मा परिषद् में पदों पर , अमर साहित्यिक संस्थान व रेवांत पत्रिका की संरक्षिका हैं ...इन सभी में व विभिन्न पत्रिकाओं में इनकी कवितायेँ , कहानियां व् लेख छपते रहे हैं |दूरदर्शन व् आकाशवाणी से आपके कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता रहा है |कि .क.बोर्ड की लखनऊ जिले की अध्यक्षा के रूप में इनकी सर्वत्र प्रशंसा हुई | सिद्धहस्थ लेखन के लिये मध्य .प्रदेश मुख्य मंत्री द्वारा २००७ , उ .प्र.भाषा संस्थान द्वारा २०१६ में व व थाईलैंड बेन्गकोक में परिकल्पना काव्य सम्मान , कथा सम्मान व् श्रीमती शारदा देवी स्मृति सम्मान से जनवरी २०१६ में विभूषित किया गया | आपके ३ काव्य संकलन ,१ साझा काव्य , १ कथा संकलन ( दस्तक हमारी ) व १ यात्रा वृतांत (देश देशांतर स्मृतियाँ ) प्रकाशी हो चुके हैं | एक व्यंग्य कहानियाँ व् एक काव्य संकलन शीघ्र प्रकाशन हेतु जा चुकी हैं | विषय चाहे जैसा भी हो दिल को छू लेने वाली कवितायेँ तुरंत तैयार कर आशु कवि के रूप में विभिन्न मंचों से प्रशंसा पा चुकी हैं | अनुभव का जो विषय है उसे उप्युक्त्तम भाषा में डालने व् मनः स्थिति जिन अनुभूतियों का संकेत कर रही है ,उन्हें यथावत शब्द रूपों में व्यक्त करने की शक्ति -सामर्थ्य डॉ .निर्मला सिंह कि विशिष्टता है |

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    02 मई 2017
    बहुत अच्छी कहानी! साधुवाद!
  • author
    शिवम् तिवाड़ी
    19 अक्टूबर 2019
    सचमुच परिवार में सामंजस्य बना कर रखना एक मुश्किल और चुनौती भरा काम होता है, कितना भी संतुलन बनने की कोशिश करो फिर भी कहीं ना कहीं कसर रह ही जाती है। खैर जहा परिवार होगा वहा छोटी मोटी बाते तो होगी ही। इस खूबसूरत रचना के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं
  • author
    26 अप्रैल 2017
    यदि पति समय समय पर पत्नी संग बच्चों को बाहर ले जाकर पिक्चर वह घुमा फिरा दिया करें तो ऐसी स्थिति में पत्नी विक्टोरिया बच्चों का सहयोग हमेशा मिलेगा
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    02 मई 2017
    बहुत अच्छी कहानी! साधुवाद!
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    शिवम् तिवाड़ी
    19 अक्टूबर 2019
    सचमुच परिवार में सामंजस्य बना कर रखना एक मुश्किल और चुनौती भरा काम होता है, कितना भी संतुलन बनने की कोशिश करो फिर भी कहीं ना कहीं कसर रह ही जाती है। खैर जहा परिवार होगा वहा छोटी मोटी बाते तो होगी ही। इस खूबसूरत रचना के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं
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    26 अप्रैल 2017
    यदि पति समय समय पर पत्नी संग बच्चों को बाहर ले जाकर पिक्चर वह घुमा फिरा दिया करें तो ऐसी स्थिति में पत्नी विक्टोरिया बच्चों का सहयोग हमेशा मिलेगा