दवा की पुड़िया काश ऐसी कोई दवा की, पुड़िया होती, खा कर उस पुड़िया को, उन यादों से राहत पाते, टीस रही जो दिल को। जीने की राह सुगम बनाते। ढोते ढोते इन यादों का, भार सहा नहीं जाता ...
बाह बहुत कमाल लिख दिया आपने, दवा की ऐसी पुड़िया के लिए जो दिल में टिस भरी यादों को मिटा दे।ऐसी पुड़िया तो मिले न मिले, मगर समय का प्रवाह हर सुख दुख टिस को अपनी अंतराल के मरहम से मिटा ही देता है। आंखों से हुई गलती के लिए बस पाश्चाताप ही काफी है,, फिर भी समय के अधीन सब कुछ है।
रचना बहुत भावभीनी है, और हृदय पर अपनी एक छाप छोड़ जाती है।आप बहुत अच्छा लिख रही हैं। बधाईयां है आपको हार्दिक शुभकामनाएं भी आदरणीया।😃🌹🙏
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बाह बहुत कमाल लिख दिया आपने, दवा की ऐसी पुड़िया के लिए जो दिल में टिस भरी यादों को मिटा दे।ऐसी पुड़िया तो मिले न मिले, मगर समय का प्रवाह हर सुख दुख टिस को अपनी अंतराल के मरहम से मिटा ही देता है। आंखों से हुई गलती के लिए बस पाश्चाताप ही काफी है,, फिर भी समय के अधीन सब कुछ है।
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