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दस्तक़

4.5
16130

विद्यालय जाने की तैयारी में थी ,कि एक दस्तक हुआ घण्टी बजी ,मैं थोड़ा झुंझलाते हुए दरवाजा खोली तो सामने एक अधेड़ को खड़े पायी ।एक हाथ में थैला दूसरे में एक रसीद बुक था ।बड़ी शालिनता से उस सज्जन ने ...

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लेखक के बारे में
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वर्षा ठाकुर

घूमना ही जिंदगी है । घूम घूम कर प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य को देखना , जानना और समझना ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Juhi Khanam
    31 March 2019
    बेशक कम ही सही दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी अभी जीवित है। देर से ही सही सच की जीत भी होती है,बस हौसला नही हारना चाहये😊
  • author
    SHANTKAY PRATAP
    04 June 2018
    वाह वर्षा जी अपने तो वर्षा ही करा दी।
  • author
    Shekhar Bhardwaj
    25 March 2018
    bhagwan jaroor hai
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    Juhi Khanam
    31 March 2019
    बेशक कम ही सही दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी अभी जीवित है। देर से ही सही सच की जीत भी होती है,बस हौसला नही हारना चाहये😊
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    SHANTKAY PRATAP
    04 June 2018
    वाह वर्षा जी अपने तो वर्षा ही करा दी।
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    Shekhar Bhardwaj
    25 March 2018
    bhagwan jaroor hai