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दस्तक अब भी दी जा रही है..

4.6
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बंद दरवाजे पर दस्तक दी जाती रही दरवाजा नहीं खुला । मगर दरवाजे के उस पार आवाज़ें थी , हलचल थी फिर दरवाजा क्यों नहीं खुला ! दरवाजे खुलने की कुछ शर्त थी शायद जब दोनों तरफ कुन्डी लगी थी मजबूत ताले थे तो ...

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लेखक के बारे में
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उपासना सियाग

उपासना सियाग  प्रकाशित रचनाएँ :      1 ) सरिता , सखी जागरण , दैनिक भास्कर और कई पत्र - पत्रिकाओं में कहानियाँ और कविताओं का प्रकाशन।       2 ) छह साँझा काव्य संग्रह और रश्मि प्रभा जी की पुस्तक में लेख ' औरत होना ही अपने आप में एक ताकत है '… का प्रकाशन।  पुरस्कार -सम्मान :-- 2011 का ब्लॉग रत्न अवार्ड , शोभना संस्था द्वारा।  अभिरुचियाँ :-- कहानी , कविता लिखने के साथ ही पढ़ने का भी शौक है।  शिक्षा : बी.एस.सी. (गृह विज्ञान ) महारानी कॉलेज जयपुर ( राजस्थान )  , ज्योतिष रत्न  ए.आई.ऍफ़.ए.एस.( AIFAS) दिल्ली। 

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    29 मई 2020
    ताले के टूटने का इंतजार दोनों ओर से है काश किसी एक ने तो दिल पर चढ़ी अहम की धूल को हटा लिया होता, वो डूबा है अपने गुरूर में तो क्या , ये सोच कर है तो अपना यार , गलतियां भुला कर किसी एक ने तो गले लगा लिया होता ।
  • author
    Himani Bhardwaj
    21 जुलाई 2020
    बहुत बढ़िया
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    29 मई 2020
    ताले के टूटने का इंतजार दोनों ओर से है काश किसी एक ने तो दिल पर चढ़ी अहम की धूल को हटा लिया होता, वो डूबा है अपने गुरूर में तो क्या , ये सोच कर है तो अपना यार , गलतियां भुला कर किसी एक ने तो गले लगा लिया होता ।
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    Himani Bhardwaj
    21 जुलाई 2020
    बहुत बढ़िया