pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

दरवाज़ा

4.2
42353

नरगिस ने तड़-तड़ दो थप्पड़ जड़ दिये। "करमजले, हिजड़े की औलाद को हिजड़े की औलाद नहीं कहेंगे तो क्या मर्द की औलाद कहेंगे? कितनी बार बोली हूं कि तू बाहर मत निकला कर।" उसने भड़ाक से कमरे का दरवाज़ा ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

मैं अख़लाक़ अहमद ज़ई। जन्म जिला बलरामपुर (उ. प्र.)।तिथि 27-12-59. 1976 से लेखन में पदार्पण। 1979 से निरंतर साहित्य लेखन। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। मामक सार, सोख़्ता (उपन्यास), मेढकी को जुकाम हो गया, शिक्षा मंडी में ग्राहक देवता का प्रवेश (कहानी संग्रह), आपका पत्र मिला (कविता संग्रह), आज मैं यहाँ हूँ (लेख संग्रह) मुम्बई और मेरी पत्रकारिता (समसामयिक लेख संग्रह), पढ़ा-लिखा इंसान (बाल कहानी संग्रह), हरकारा (पत्र संग्रह) तथा जेबकतरा (लघुकथा संकलन) प्रकाशित।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kumar Peyush
    19 सितम्बर 2018
    कुदरत की नाइंसाफी के शिकार को कहानी का कैरेक्टर बनाना बड़े हौसले का काम है...इसके लिए लेखक बधाई का पात्र है... अखलाक जई की तारीफ इस बात के लिए अवश्य की जानी चाहिए कि एेसे कैरेक्टर को पात्र बनाने के बावजूद उन्होंने इसे अश्लीलता से बचाये रखा... नहीं तो सृजन की आड़ में सेक्स की विकृति व कुंठा को परोस कर कहानी का टीआरपी बढ़ाने का काम आसानी से कर सकते थे..और उन्होंने कैरेक्टर के मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है... साथ ही पत्नी, परिवार, समाज, मां-बाप आदि पात्रों का इस्तेमाल बड़े संतुलन से किया कि कहानी के मुख्य पात्र समुचित रूप से उतर सके... इदरीश के प्राकृतिक मनोभाव व मानसिकता तथा समाज व घर-परिवार से तादात्म्य की जद्दोजहेद तथा पत्नी के प्रति अनुग्रह-विग्रह के बीच संतुलन की कोशिश का चित्रण आसान काम नहीं.. पर लेखक इसमें सफल रहा...असफल रहने पर घर छोड़कर चले जाना, अपनी कमी को शौक के रूप आजमाकर पिता की आर्थिक मदद करने का जज्बा तथा सामाजिक तिरस्कार से आहत पिता की नाराजगी का चित्रण लाजवाब है... लेकिन सबसे गजब कहानी का अंत है जो भीतर तक छूता है.. पत्नी का पति के प्रति समर्पण व प्यार...तमाम सामाजिक तानों व अपमानों के बावजूद कुदरत अभिशप्त पति का इंतजार रिश्तों की मजबूती का इजहार है जो भारतीय परिवारों का सबसे मजबूत पक्ष है...लेखक को बधाई...
  • author
    Geeta Singh
    19 मई 2019
    अच्छी कहानी ऐसा मैं ने देखा है पर ओ घर छोड़कर नहीं गए अपने परिवार के साथ ही रहते थे
  • author
    Pooja Thakur
    02 फ़रवरी 2019
    बहुत अच्छी कहानी।। काश आगे और लिखी होती।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kumar Peyush
    19 सितम्बर 2018
    कुदरत की नाइंसाफी के शिकार को कहानी का कैरेक्टर बनाना बड़े हौसले का काम है...इसके लिए लेखक बधाई का पात्र है... अखलाक जई की तारीफ इस बात के लिए अवश्य की जानी चाहिए कि एेसे कैरेक्टर को पात्र बनाने के बावजूद उन्होंने इसे अश्लीलता से बचाये रखा... नहीं तो सृजन की आड़ में सेक्स की विकृति व कुंठा को परोस कर कहानी का टीआरपी बढ़ाने का काम आसानी से कर सकते थे..और उन्होंने कैरेक्टर के मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है... साथ ही पत्नी, परिवार, समाज, मां-बाप आदि पात्रों का इस्तेमाल बड़े संतुलन से किया कि कहानी के मुख्य पात्र समुचित रूप से उतर सके... इदरीश के प्राकृतिक मनोभाव व मानसिकता तथा समाज व घर-परिवार से तादात्म्य की जद्दोजहेद तथा पत्नी के प्रति अनुग्रह-विग्रह के बीच संतुलन की कोशिश का चित्रण आसान काम नहीं.. पर लेखक इसमें सफल रहा...असफल रहने पर घर छोड़कर चले जाना, अपनी कमी को शौक के रूप आजमाकर पिता की आर्थिक मदद करने का जज्बा तथा सामाजिक तिरस्कार से आहत पिता की नाराजगी का चित्रण लाजवाब है... लेकिन सबसे गजब कहानी का अंत है जो भीतर तक छूता है.. पत्नी का पति के प्रति समर्पण व प्यार...तमाम सामाजिक तानों व अपमानों के बावजूद कुदरत अभिशप्त पति का इंतजार रिश्तों की मजबूती का इजहार है जो भारतीय परिवारों का सबसे मजबूत पक्ष है...लेखक को बधाई...
  • author
    Geeta Singh
    19 मई 2019
    अच्छी कहानी ऐसा मैं ने देखा है पर ओ घर छोड़कर नहीं गए अपने परिवार के साथ ही रहते थे
  • author
    Pooja Thakur
    02 फ़रवरी 2019
    बहुत अच्छी कहानी।। काश आगे और लिखी होती।