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डर क्यों लगता है.....

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डर क्यों लगता हैं.... तेरे बिन तन्हा हो जाने से रहेगी जिंदगी नहीं खुशहाल तेरे छोड़ जाने से डर डर के कैसे गुजारे ये पल लगता नहीं के हम जी पायेंगे तुमबिन अब तो सुकून तब ही मिले जब रूह छूट जाये जिस्म ...

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Pratiksha
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    रूप नारायन "Roop"
    01 नवम्बर 2020
    बहुत लाजवाब। साथी के बिन जब तन्हा हो जाते हैं तो ऐसा कुछ दिनों तक महसूस होता है, कंपकंपी घबराहट डर 👌👌👍👍🌹🌹
  • author
    PRAVIN KORGAONKAR
    31 अक्टूबर 2020
    खूप सार्‍या वैविध्यपूर्ण शब्दांची वैशिष्ट्यपूर्ण रचना जिच्यात आर्तता होती 👌👌👌👌
  • author
    .
    31 अक्टूबर 2020
    very very nice 👌👌👏👏👏☺️
  • author
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  • author
    रूप नारायन "Roop"
    01 नवम्बर 2020
    बहुत लाजवाब। साथी के बिन जब तन्हा हो जाते हैं तो ऐसा कुछ दिनों तक महसूस होता है, कंपकंपी घबराहट डर 👌👌👍👍🌹🌹
  • author
    PRAVIN KORGAONKAR
    31 अक्टूबर 2020
    खूप सार्‍या वैविध्यपूर्ण शब्दांची वैशिष्ट्यपूर्ण रचना जिच्यात आर्तता होती 👌👌👌👌
  • author
    .
    31 अक्टूबर 2020
    very very nice 👌👌👏👏👏☺️