चूँकि `भारतीय राष्ट्र' के गठन में गाँधीजी के विचारों को केंद्रीयता प्राप्त है, इसलिए `हरिजन बनाम दलित' के संदर्भ को भी गाँधीजी के विचारों की केंद्रीयता में देखा जाना चाहिए। `हरिजन' और `दलित' का ...
मँजी हुई शर्म का जनतंत्र के (कविता संकलन)
साहित्य समाज और जनतंत्र (लेख संकलन)
बाजारवाद और जनतंत्र (लेख संकलन)
आजादी और राष्ट्रीयता का मतलब (लेख संकलन)
छुटे हुए क्षण (जीवनानुभव)
कई पुस्तकों के सहलेखक
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
संप्रति नाबार्ड के क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता में कार्यरत।
संपर्क : [email protected]
मोबाइल : 919007725174
सारांश
मँजी हुई शर्म का जनतंत्र के (कविता संकलन)
साहित्य समाज और जनतंत्र (लेख संकलन)
बाजारवाद और जनतंत्र (लेख संकलन)
आजादी और राष्ट्रीयता का मतलब (लेख संकलन)
छुटे हुए क्षण (जीवनानुभव)
कई पुस्तकों के सहलेखक
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
संप्रति नाबार्ड के क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता में कार्यरत।
संपर्क : [email protected]
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बहुत उतम विचारों को प्रेषित करता लेख़.....यदी हम जाती की व्यवस्था को पूर्णता समाप्त कर दें, तो यह घृणित राजनीति मे अंतर आयेगा क्या़?
हमारे देश मे जाति भेद, या वर्ण व्यवस्था अब गुटबंदी की गंदी राज नीति मे बदल चूकी है.... समस्या हल होने के बजाय विकृत रूप ले रही है।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
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बहुत उतम विचारों को प्रेषित करता लेख़.....यदी हम जाती की व्यवस्था को पूर्णता समाप्त कर दें, तो यह घृणित राजनीति मे अंतर आयेगा क्या़?
हमारे देश मे जाति भेद, या वर्ण व्यवस्था अब गुटबंदी की गंदी राज नीति मे बदल चूकी है.... समस्या हल होने के बजाय विकृत रूप ले रही है।
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