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दहेज प्रथा

4.5
6977

देखो जी अब हमारी बिटिया बड़ी हो गई है, कितनी सुंदर दिखने लगी है, कल तक जिसकी तोतली आवाज हमको हंसाती थी और मिश्री सी मीठी बोली पर हम फूले नहीं सिहाते थे, आज कैसे शर्माने लगी है। माँ ने अंजली की तरफ ...

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विकास कुमार

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समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    01 మే 2018
    शानदार रचना विकास जी सच मे पढ़ने में मजा आया मन प्रफुल्लित हुआ आभार आपका इस रचना के लिए
  • author
    Meera Sajwan "मानवी"
    13 అక్టోబరు 2018
    उत्कृष्ट रचना विकास जी,समाज का यथार्थ जो हम सब जानते हैं जिसकी बलीवेदी प्रतिदिन कितने ही परिवार चढ़ते हैं लेकिन दहेज रूपी दानव नित नवीन रूप धर लेता है जिसमें लेने वाला ही नहीं अपितु देने वाला भी दिखावे के कारण इस कुप्रथा क़ो और बल प्रदान करता है।कम शब्दों में समाज का कट्टु सत्य प्रस्तुति के लिए साधुवाद।
  • author
    18 ఫిబ్రవరి 2019
    हरीओम कि माली हालत। अगर वह भी कहीं लाख रूपए कमा रहा होता तो लाख कमाने वाला, जमींदार औऱ उपरी कमाई वाला दामद खोज रहा होता। हो सकता है इस हालत मे भी सरकारी नौकरी वाला दामाद खोज रहा हो।
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    01 మే 2018
    शानदार रचना विकास जी सच मे पढ़ने में मजा आया मन प्रफुल्लित हुआ आभार आपका इस रचना के लिए
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    Meera Sajwan "मानवी"
    13 అక్టోబరు 2018
    उत्कृष्ट रचना विकास जी,समाज का यथार्थ जो हम सब जानते हैं जिसकी बलीवेदी प्रतिदिन कितने ही परिवार चढ़ते हैं लेकिन दहेज रूपी दानव नित नवीन रूप धर लेता है जिसमें लेने वाला ही नहीं अपितु देने वाला भी दिखावे के कारण इस कुप्रथा क़ो और बल प्रदान करता है।कम शब्दों में समाज का कट्टु सत्य प्रस्तुति के लिए साधुवाद।
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    18 ఫిబ్రవరి 2019
    हरीओम कि माली हालत। अगर वह भी कहीं लाख रूपए कमा रहा होता तो लाख कमाने वाला, जमींदार औऱ उपरी कमाई वाला दामद खोज रहा होता। हो सकता है इस हालत मे भी सरकारी नौकरी वाला दामाद खोज रहा हो।