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दहेज लेकर नही आयी

4.4
3837

बर्तनो के ढेर लगाकर नलके के पास बैठी वो नई नवेली दुल्हन निरीह नजरो से देखती है अपने मेंहदी रचे हाथो को उ सके बीच की लकीरो को अपने बिखरे जज्बातो को समेटने का अथक प्रयास करती है वह लेकिन फिसल जाते है ...

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लेखक के बारे में
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पंकज बिहारी

माता का नाम : श्रीमती विधावती देवी पिता का नाम : श्री बिपिन बिहारी श्रीवास्तव जन्म - तिथि : 28.02.1978 जन्म स्थान : ग्राम - कुशहरा , पोस्ट - नन्दपुर अमवारी , जिला - सिवान (बिहार) शिक्षा : स्नातक

समीक्षा
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  • author
    17 सितम्बर 2018
    abe ab sab kuch aisa nhi raha h. ab ladkiya roti nahi h .. rulati h bina dahej ke dahej pratha lagati h. fir ek ghr ko chorkar dusre ghar vivah rachati h or fir se wahan par bhi yehi nakse farmati h. to ab likhna band kare dahej par. kyuki purush ki halat mahilao se bahut bekaar ho gai h..
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का बिलकुल ध्यान नहीं व मात्रा तक की कमी है । बकवास कविता ।
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    31 अक्टूबर 2018
    दहेज न लाने वाली स्त्री की पीड़ा को व्यक्त किया है आपने / बहुत ही अहम सवाल पर कलम चलाई है / मैं आपके प्रयास की सराहना करता हुँ...
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    17 सितम्बर 2018
    abe ab sab kuch aisa nhi raha h. ab ladkiya roti nahi h .. rulati h bina dahej ke dahej pratha lagati h. fir ek ghr ko chorkar dusre ghar vivah rachati h or fir se wahan par bhi yehi nakse farmati h. to ab likhna band kare dahej par. kyuki purush ki halat mahilao se bahut bekaar ho gai h..
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का बिलकुल ध्यान नहीं व मात्रा तक की कमी है । बकवास कविता ।
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    Ravindra Narayan Pahalwan
    31 अक्टूबर 2018
    दहेज न लाने वाली स्त्री की पीड़ा को व्यक्त किया है आपने / बहुत ही अहम सवाल पर कलम चलाई है / मैं आपके प्रयास की सराहना करता हुँ...