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दहेज एक लानत....

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🙇💐💐 दहेज लेंगे ना दहेज देंगे इस क़सम को हमें खाना होगा आज नहीं तो कल समाज को दहेज मुक्त बनाना होगा प्यारे साथियों हम सभी जानते हैं दहेज एक लानत है कोढ़ है अभिशाप है..... हजा़र कानून बना ...

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लेखक के बारे में
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Sayyeda Khatoon

समाज में फैली कुरूतियों और औरतों पर होते हुए अत्याचार को जब- जब पढ़ती देखती और सुनती हूँ मन द्रवित हो जाता है। उनके लिए कुछ न कर पाने की कसक मे स्वत: ही मेरी लेखनी कुछ लिख डालने पर तत्पर हो जाती है । मेरी कविताएँ लेख व टिप्पणियाँ मैगज़ीन का हिस्सा बनती रही है।प्रतिलिपि में प्रकाशित मेरी कविताएँ कन्या भ्रूण हत्या, हमारी फरीयाद,मज़दूर और माँ अनेक मैगज़ीन का हिस्सा बनती रही हैं। ड्रेस डिजाइनिंग, पेंटिंग, चित्रकारी, कढ़ाई- बुनाई व कुकिंग में मेरी बड़ी रूचि है या यूँ समझ ले कि इन क्षेत्रों में मेरी अच्छी पकड़ है। आप सभी का सहयोग व समीक्षाएँ मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है । मेरा निवास स्थान अब उत्तराखंड है 😊😊

समीक्षा
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  • author
    Balkar Singh Goraya
    18 फ़रवरी 2022
    बहुत अच्छा लिखा है आपने। आवाज़ उठे तो लोग सुनते भी हैं। 2000 - 05 तक हम राजस्थान में थे। उन दिनों वहां आवाज़ उठ रही थी कि "मृतक भोजन बंद करो।" लोग खाने पर जाना छोड़ रहे थे। केवल मेहमान ही खाते थे। इसी तरह 1960 के आसपास ( तब हम प्राईमरी स्कूल में थे ) आवाज़ उठी थी कि सिक्खों की बारात नहीं ठहरनी चाहिए रात को। तब से अब तक बारात सुबह आकर शाम को वापिस लौट जाती है। बारातियों की गिनती भी तह की जाती है। लेकिन दहेज के मामले में समर्थ लोग बेटी को दहेज का लालच देकर उसका जायदाद का हिस्सा हड़प लेते हैं। यह भी एक वजह है।
  • author
    18 फ़रवरी 2022
    पूरी तरह सहमत हूँ आपसे, दहेज़ प्रथा पहले तो मजबूरी वश थी पर आज मजबूरी कम दिखावा और स्टेटस भी बनती जा रही है। और इसमें कोई एक पक्ष ही शामिल नहीं है बल्कि दोनों पक्षों की बराबर भगीदारी होती है। बहुत अच्छा लिखा है आपने👌👌
  • author
    Zeeshan Ahmad Khan "Shanu"
    18 फ़रवरी 2022
    बहुत उम्दा प्रेरक लेख सय्यदा जी, सही कहा आपने दहेज वास्तव में एक अभिशाप बन गया है और समाज काे जागरूक एवं शिक्षित करके ही इस महामारी पर पूरी तरह राेक लगाई जा सकती है.....!
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    Balkar Singh Goraya
    18 फ़रवरी 2022
    बहुत अच्छा लिखा है आपने। आवाज़ उठे तो लोग सुनते भी हैं। 2000 - 05 तक हम राजस्थान में थे। उन दिनों वहां आवाज़ उठ रही थी कि "मृतक भोजन बंद करो।" लोग खाने पर जाना छोड़ रहे थे। केवल मेहमान ही खाते थे। इसी तरह 1960 के आसपास ( तब हम प्राईमरी स्कूल में थे ) आवाज़ उठी थी कि सिक्खों की बारात नहीं ठहरनी चाहिए रात को। तब से अब तक बारात सुबह आकर शाम को वापिस लौट जाती है। बारातियों की गिनती भी तह की जाती है। लेकिन दहेज के मामले में समर्थ लोग बेटी को दहेज का लालच देकर उसका जायदाद का हिस्सा हड़प लेते हैं। यह भी एक वजह है।
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    18 फ़रवरी 2022
    पूरी तरह सहमत हूँ आपसे, दहेज़ प्रथा पहले तो मजबूरी वश थी पर आज मजबूरी कम दिखावा और स्टेटस भी बनती जा रही है। और इसमें कोई एक पक्ष ही शामिल नहीं है बल्कि दोनों पक्षों की बराबर भगीदारी होती है। बहुत अच्छा लिखा है आपने👌👌
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    Zeeshan Ahmad Khan "Shanu"
    18 फ़रवरी 2022
    बहुत उम्दा प्रेरक लेख सय्यदा जी, सही कहा आपने दहेज वास्तव में एक अभिशाप बन गया है और समाज काे जागरूक एवं शिक्षित करके ही इस महामारी पर पूरी तरह राेक लगाई जा सकती है.....!