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दहेज़

4.6
510

बेटी की सुंदरता और साक्षरता को ताक पर बिठाया, जब से दहेज एक अभिशाप बनकर आया। न इल्म देखा जाय ना ही संस्कार , बस धन की बोली औ नकद की भाषा सुनाय। इन नर पिशाचों के क्या कहने, न शर्म न हया इनके ...

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लेखक के बारे में

शिक्षा :स्नातक, अधिस्नातक, Ph. D (महाराजा सयाजीराव विश्विद्यालय, बड़ौदा (गुजरात) कार्यक्षेत्र :vnm TV as a script writer, गुजराती बोल पत्रिका मे एडिटर के रूप में, baroda public school (हिंदी शिक्षिका)4 वर्ष तक, st. Pius (मुंबई) as a hindi teacher, नूतन D.Ed college (मुंबई) मे lacturer के रूप में, target publications as a editor, chetna publications as a academic writer and visiting lacturer *राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सम्मानित *अंतर्रास्ट्रीय हिंदी साहित्य सेवी संस्थान, प्रयागराज द्वारा सहित्य 'श्री' सम्मान *रोटरी क्लब, झाबुआ द्वारा नारी शक्ति सम्मान *पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी द्वारा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    08 अप्रैल 2019
    खूबसूरत रचना
  • author
    jaiswal santosh
    22 फ़रवरी 2018
    खूबसूरत पंक्तियाँ ,लेकिन कहीं कहीं तुकबंदी पर जयादा ध्यान देने से फिशल सी गई है पर बहुत अच्छा प्रयास काबिलेतारीफ
  • author
    Vinay Pal
    05 जनवरी 2022
    समाज के लोभी और बुराई पैदा करने वालों, कुछ सीख लो। बहुत सुंदर रचना , अद्भुत।
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    08 अप्रैल 2019
    खूबसूरत रचना
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    jaiswal santosh
    22 फ़रवरी 2018
    खूबसूरत पंक्तियाँ ,लेकिन कहीं कहीं तुकबंदी पर जयादा ध्यान देने से फिशल सी गई है पर बहुत अच्छा प्रयास काबिलेतारीफ
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    Vinay Pal
    05 जनवरी 2022
    समाज के लोभी और बुराई पैदा करने वालों, कुछ सीख लो। बहुत सुंदर रचना , अद्भुत।