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दहेज

4.6
131

कोई कुप्रथा कब धीरे धीरे समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित करते हुए नासूर बन जाती है पता ही नहीं चलता

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रामनाम जपने की उम्र मैं लिख रहा हू क्या करू राईटिंग बहुत खराब है और प्रतिलिपि तब थी नहीं

समीक्षा
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  • author
    Meenakshi Shrivastava "Nirmal sneha"
    19 ಜನವರಿ 2020
    yaha bhi vo hi prob,, koi kisi ko samjhna nahi chahta aur kahi sach main prob hoti hey
  • author
    वंदना बाजपेयी
    10 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    सहज,मन के भावों को उकेरती हुई मर्म स्पर्शी रचना
  • author
    14 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    बहोत बढ़िया कहानी,, समाज का आईना
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    Meenakshi Shrivastava "Nirmal sneha"
    19 ಜನವರಿ 2020
    yaha bhi vo hi prob,, koi kisi ko samjhna nahi chahta aur kahi sach main prob hoti hey
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    वंदना बाजपेयी
    10 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    सहज,मन के भावों को उकेरती हुई मर्म स्पर्शी रचना
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    14 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    बहोत बढ़िया कहानी,, समाज का आईना