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हिन्दी

दफ्तरी

4.5
12571

रफाकत हुसेन मेरे दफ्तर का दफ्तरी था। 10 रु. मासिक वेतन पाता था। दो-तीन रुपये बाहर के फुटकर काम से मिल जाते थे। यही उसकी जीविका थी, पर वह अपनी दशा पर संतुष्ट था। उसकी आंतरिक अवस्था तो ज्ञात नहीं, पर ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • author
    संचित शाही
    12 ஜனவரி 2019
    आज तक शब्दों का एकदूसरे से इतना स्नेहशील बन्धन मैंने किसी और कि रचना में नहीं देखा,मेरी समझ से श्रधेय मुंशी प्रेमचंद जी की लेखन कौशल इतनी उम्दा थी कि अगर स्थानीय लहजों से अलग अगर वो किसी अशिष्ट शब्दों का भी अपनी रचनाओं में अपने अंदाज में इस्तेमाल करते तो शायद पाठक उसे भी सहज स्वीकार कर लेता। वो सभी आयु वर्गों को ध्यान में रख के ही कुछ लिखते थे, और शायद आज यही वजह है कि उनकी रचनाओं की स्वीकार्यता समाज के सभी वर्गों में है और इन्ही कारणों से वो आज भी असंख्य साहित्यप्रेमियों के जेहन में जिंदा हैं। नमन है उन्हें🙏🙏।
  • author
    13 ஜனவரி 2019
    क्या खूब कहा है,, ''गृह्दाह में जलने वाले वीर , रणक्षेत्र के वीरों से कम महत्वशाली नहीं होते।'' बहुत सुन्दर।
  • author
    Rajkumar Misra
    11 மே 2020
    सामान्य जीवनवृत्त को अपने शब्द विन्यास से रोचक कथा बना देते हैं ''कथा सम्राट'' मुंशी जी .
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    संचित शाही
    12 ஜனவரி 2019
    आज तक शब्दों का एकदूसरे से इतना स्नेहशील बन्धन मैंने किसी और कि रचना में नहीं देखा,मेरी समझ से श्रधेय मुंशी प्रेमचंद जी की लेखन कौशल इतनी उम्दा थी कि अगर स्थानीय लहजों से अलग अगर वो किसी अशिष्ट शब्दों का भी अपनी रचनाओं में अपने अंदाज में इस्तेमाल करते तो शायद पाठक उसे भी सहज स्वीकार कर लेता। वो सभी आयु वर्गों को ध्यान में रख के ही कुछ लिखते थे, और शायद आज यही वजह है कि उनकी रचनाओं की स्वीकार्यता समाज के सभी वर्गों में है और इन्ही कारणों से वो आज भी असंख्य साहित्यप्रेमियों के जेहन में जिंदा हैं। नमन है उन्हें🙏🙏।
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    13 ஜனவரி 2019
    क्या खूब कहा है,, ''गृह्दाह में जलने वाले वीर , रणक्षेत्र के वीरों से कम महत्वशाली नहीं होते।'' बहुत सुन्दर।
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    Rajkumar Misra
    11 மே 2020
    सामान्य जीवनवृत्त को अपने शब्द विन्यास से रोचक कथा बना देते हैं ''कथा सम्राट'' मुंशी जी .