शीर्षक--"चूड़ी का टुकड़ा" चूड़ी का वही... टूटा टुकड़ा है वो, श्रृंगार में कभी शामिल था जो, खूबसूरती सदा .... प्रेयसी की बढाकर, प्रेमी के दिल को... धड़काता था जो। असहाय होकर आज.... बाहर घर के पड़ा ...
हिन्दी साहित्य से बेपनाह प्यार करती हूं।
साहित्य के सागर की एक ऐसी बूंद बनाना चाहती हूं जो अपनी शीतलता से जन- जीवन में शांति व खुशियों का संचार कर सके।
आपसब से सहयोग की अपेक्षा रखती हूं 🙏🙏
सारांश
हिन्दी साहित्य से बेपनाह प्यार करती हूं।
साहित्य के सागर की एक ऐसी बूंद बनाना चाहती हूं जो अपनी शीतलता से जन- जीवन में शांति व खुशियों का संचार कर सके।
आपसब से सहयोग की अपेक्षा रखती हूं 🙏🙏
रिपोर्ट की समस्या
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