क्यों न हो चिराग तले अंधेरा. जो औरों को रोशनी देने के लिए खुद अपने दिल औ अरमां जलाते हैं वो कबअपने लिए रोशनी का कतरा बचाते हैं. दस्तूरे ज़माना है,ज़रूरत पे सब लूटते हैं लुटे हुए इंसान को ,दीप तले ...
मैं गृहिणी हूँ।लेखन में रुचि है।सामाजिक विषयों पर लेखन पसंद है।एक उपन्यास, हम कैदी जनम के, तथा एक कविता संग्रह अश्रुधारा. प्रकाशित हो चुका है। समाज सेवा में भी रुचि है अतः लायंस क्लब इंटरनेशनल में सदस्यता भी ले रखी है।
सारांश
मैं गृहिणी हूँ।लेखन में रुचि है।सामाजिक विषयों पर लेखन पसंद है।एक उपन्यास, हम कैदी जनम के, तथा एक कविता संग्रह अश्रुधारा. प्रकाशित हो चुका है। समाज सेवा में भी रुचि है अतः लायंस क्लब इंटरनेशनल में सदस्यता भी ले रखी है।
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