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चिंगारी सत्य की

4.2
477

ना जाने कब रूकेगा, ना जाने कब थमेगा गहन चिंतन करता मन! राहों से निकलती राहें और उनसे फूटती अनगिनत पगडंडियाँ कहाँ तक ले जाएँगी अंतर्मन की सोंच को कब तक भटकना है इनपर यूँ हीं दिशाहीन आसमान में चमकता ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manjit Singh
    22 जुलाई 2020
    hats off to your poem . accept my salutations. God bless you millions of times
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    08 अक्टूबर 2019
    बहुत ही सारगर्भित प्रभावी अभिव्यक्ति ।
  • author
    BHUSHAN KHARE
    16 मई 2018
    बहुत अच्छी रचना
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manjit Singh
    22 जुलाई 2020
    hats off to your poem . accept my salutations. God bless you millions of times
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    08 अक्टूबर 2019
    बहुत ही सारगर्भित प्रभावी अभिव्यक्ति ।
  • author
    BHUSHAN KHARE
    16 मई 2018
    बहुत अच्छी रचना