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(१.) निर्धनता अभिशाप, बनी कडवी सच्चाई वक्त बड़ा है सख्त, बढे पल-पल महंगाई पिसते रोज़ ग़रीब, हाय! क्यों मौत न आई "महावीर" कविराय, विकल्प न सूझे भाई लोकतंत्र की नीतियाँ, प्रहरी पूंजीवाद की भ्रष्टतंत्र की ...