pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

"चंचला"

4.3
1165

?? निकलने न दिया, ये आसमां नजरों से, वरना इस ज़मीं से, बिछड़ जाते ख़्वाब। ??

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Mukesh sikarwar "Dada" Advocate

मैं तो इक दरिया हूँ, मुझको रुकना नहीं आता, ख़ामोशियां लबों की, मुझको पढ़ना नहीं आता। हर रोज़ बदलते हैं "दादा" मंज़र मेरे साहिल के, किसी एक मंज़र में, मुझको ढ़लना नहीं आता। ©®🖋️ 🇮🇳🙏🇮🇳 मुकेश सिकरवार "दादा" एडवोकेट धौलपुर (राज.) 328001 मो. 9414584831

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Moti Ram
    02 मई 2021
    माता पिता के व्यस्त जीवन से भिन्न स्वयं के हौसले से मुक्त गगन में ऊड़ान सा सपना साकार करना अच्छा लगा। लेखक को शुभाशिष।
  • author
    Chandan Kumar
    23 मई 2021
    बहुत ही बेहतरीन कहानी
  • author
    Madhu Arora
    01 अक्टूबर 2020
    बहुत खूब लिखा है आपने
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Moti Ram
    02 मई 2021
    माता पिता के व्यस्त जीवन से भिन्न स्वयं के हौसले से मुक्त गगन में ऊड़ान सा सपना साकार करना अच्छा लगा। लेखक को शुभाशिष।
  • author
    Chandan Kumar
    23 मई 2021
    बहुत ही बेहतरीन कहानी
  • author
    Madhu Arora
    01 अक्टूबर 2020
    बहुत खूब लिखा है आपने