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चाहता हूँ

4.5
660

सुबह को सुबह में शाम को शाम में देखना चाहता हूँ डूबते सूरज को देखना चाहता हूँ सड़को से घर लौटते उन्ही रास्तो से घर को लौटना चाहता हूँ आसमान तलक ऊँची दुकानों के बीच पुरानी गली के कोने में अखबार ...

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लेखक के बारे में

देखी और समझी के बीच का कुछ है जो लिखता हूँ ..जब भी मैं बचता हूँ अपनी रोजमर्रा में से कुछ थोड़ा सा ।। थोड़ा जानता हूँ , थोड़ा समझता हूँ इसलिए थोड़ा लिखता हूँ ..

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rittika Saxena "Chintu"
    07 जुलाई 2018
    बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल। भीड़ और भागती ज़िन्दग़ी से हर दिल बस यही तो चाहता है, दिल की बात कह डाली।
  • author
    01 सितम्बर 2018
    नाम से फिजूल काम से फाजिल ।नमन है तुम्हे दोस्त मेरे काबिल ।
  • author
    Arun Srivastava
    24 नवम्बर 2019
    Kavi Ki Soch bahut acchi hai Sar Vashishth hai
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    Rittika Saxena "Chintu"
    07 जुलाई 2018
    बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल। भीड़ और भागती ज़िन्दग़ी से हर दिल बस यही तो चाहता है, दिल की बात कह डाली।
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    01 सितम्बर 2018
    नाम से फिजूल काम से फाजिल ।नमन है तुम्हे दोस्त मेरे काबिल ।
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    Arun Srivastava
    24 नवम्बर 2019
    Kavi Ki Soch bahut acchi hai Sar Vashishth hai