आदरणीय अजीत सिंह पाटिल जी, आपकी कहानी बहुत अच्छी है। आपकी कहानी में कथ्य को बहुत साफ तरीके से आगे बढाया गया है। इसमें पठनीयता और प्रवाह बणा रहता है। यह कहानी अंत होते होते एक सन्देश भी देती है, और या सन्देश बहुत ही सीधे और सशक्त ढंग से देती है। आप में एक बाधा रचनाकार छुपा है, जो बाहर आकर छा जाने को बेचैन दीख रहा है। आपकी साहित्यिक यात्रा के लिये शुभकामनायें।कुछ वर्तनी को सुधार लें, तो सोने पर सुहागा हो जाय।
आप इसी साइट पर मेरी रचनाएँ पढें और अपने विचार दें। आप
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मेरी लिखी दूसरी पुस्तक उपन्यास के रूप में "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" के नाम से हिंद युग्म से प्रकाशित हो चुकी है।
पुस्तक के कथानक के बारे में:
यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं।
कॉलेज की पढाई करते - करते
समय की गलियों से यूँ गुजरना।
कुछ तोंद वाले सर, कुछ दुबले -पतले सर,
कुछ चप्प्लों में सर, कुछ जूतों में सर।
जैसे कॉलेज की दीवार से सटे
रेलवे लाईन पर ट्रेनों का गुजरना।
इसी बीच पनपता प्यार,
विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच।
छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होते ही
बाहरी तत्वों के घुसपैठ से,
कॉलेज के शान्त वातावरण का
पुल - सा कम्पित होना, थर्राना।
ये सब कुछ और इससे भी अधिक बहुत कुछ...
पढें उपन्यास "डिवाईडर पर कॉलेज जंक्शन" में***
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