चाहा बहुत खुद से ही प्यार करूं किसी से न उम्मीद करूं चाहा बहुत खुद को ही मैं सराहऊं मगर सबने मुझमें इतनी खामियां गिनाई खुद में ही कमीयां नजर आने लगी दर्पण के अक्स से भी पूछा क्ई दफा क्या मैं इतनी ...
अंतर्मन की आवाज़ को देती हूँ शब्दों का आकार,
मेरी लेखनी में सिमटा है, संवेदनाओं का संसार।
मेरी रचनाएं मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।
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सारांश
अंतर्मन की आवाज़ को देती हूँ शब्दों का आकार,
मेरी लेखनी में सिमटा है, संवेदनाओं का संसार।
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सही है दूसरों की जैसे पहले खुद की जय करो खुद से प्यार करना बहुत जरूरी है हम अपने आप से प्यार करेंगे तभी अपनी खुद की इज्जत कर पाएंगे और आत्मविश्वास से रह सकेंगे
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