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बुरी लड़की...

4.2
11870

आधी रात का समय।सारा जहाँ नींद की आगोश में बेखबर सोया था पर वो करवटें बदल रही थी।नींद आंखों से कोसो दूर थी।उसने खिड़कियां खोल रखी थी ।रात चांदनी थी।पूरी रोशनी खिड़की से होते हुए उसके बदन पर छिटकी ...

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लेखक के बारे में
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vandana choubey

' शिक्षा-परास्नातक हिन्दी,नेट/जेआरएफ (हिंदी) सम्मान- हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से सम्मानित रचनाएं-लघु कथाएं -बेईमान,होशियारी (दैनिक जागरण में छपी हैं।) कविता-मानव बनो, दैनिक जागरण आदिता ,सांझ काव्य संग्रह में पांच रचनाएं । सम्प्रति -अध्यापन एवं लेखन। "🌹 मंजिल पाने की जिद नहीं, मेरा सफर ही इतना खूबसूरत हैं।🌹 "🙏क्या मांगू ईश्वर से अब ,जितना मिला उम्मीद से ज्यादा मिला ।ईश्वर की वंदना हूँ वो दूर कहाँ मुझसे🙏 लेखक की खासियत यह है कि ये कभी रिटायर्ड नहीं होते तो लिखते रहें करवां आगे बढ़ता रहे। नववर्ष मंगलमय हो।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    25 जुलै 2019
    जबरदस्त कहानी। लेखन विद्या किसे कहते हैं आज समझ आया। आपकी लेखनी से निकले पात्र सजीव हो उठे, नायिका और मीनू को जिस तरह से आपने दिखाया वह गजब था। अंतर्मन और दर्शय को उभारने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी आपने। प्रतिलिपि के आप बेस्ट राइटर हो यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही। आपसे निवेदन है कृपया कुछ लिखने के टिप्स हमे भी सिखाने की कृपा करें। मैं आपके जैसे ही लिखना चाहता हूं। 😇😇
  • author
    Aditi Bhardwaj "आदी"
    18 जानेवारी 2020
    आपकी लेखन क्षमता अद्भुत है सराहनीय है. सटीक संख्या में शब्दों का प्रयोग किया है. आंचल बेवकूफ़ लोगों को समझाने चली थी. जैसी माँ वैसे बच्चे. मीनू रिंकी ने अपनी माँ से ही सीखा है, अपने उल्टे सीधे किये कराए का सारा ठीकरा दूसरों के सर फोड़ देना. आंचल को शुरुआत में ही आभास हो गया था कि मीनू मंजय के संपर्क में रह कर दिमाग से पैदल हो चली है. तभी अपने और मिनू के घर वालों की जानकारी में रख कर अपने संबंध खत्म कर लेने चाहिए थे. पढ़ाई की बात देती, बोल देती अब मैं फोन पर दिन में 10 minutes से ज्यादा समय व्यतीत नहीं करती. आंचल अपने माता पिता को तो कॉल रिकॉर्ड तो दिखा सकती थी. वो मीनू के माता पिता को उन्हीं के स्तर पर अच्छे से सुना देते और अपनी बेटी आंचल पर गर्व करते
  • author
    Ravendra Yadav
    26 ऑगस्ट 2019
    बहुत अच्छा लिखा है @वंदना जी पर एक कि जगह 2 पार्ट में लिखते इसे तो ज्यादा अच्छा लगता...
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    25 जुलै 2019
    जबरदस्त कहानी। लेखन विद्या किसे कहते हैं आज समझ आया। आपकी लेखनी से निकले पात्र सजीव हो उठे, नायिका और मीनू को जिस तरह से आपने दिखाया वह गजब था। अंतर्मन और दर्शय को उभारने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी आपने। प्रतिलिपि के आप बेस्ट राइटर हो यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही। आपसे निवेदन है कृपया कुछ लिखने के टिप्स हमे भी सिखाने की कृपा करें। मैं आपके जैसे ही लिखना चाहता हूं। 😇😇
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    Aditi Bhardwaj "आदी"
    18 जानेवारी 2020
    आपकी लेखन क्षमता अद्भुत है सराहनीय है. सटीक संख्या में शब्दों का प्रयोग किया है. आंचल बेवकूफ़ लोगों को समझाने चली थी. जैसी माँ वैसे बच्चे. मीनू रिंकी ने अपनी माँ से ही सीखा है, अपने उल्टे सीधे किये कराए का सारा ठीकरा दूसरों के सर फोड़ देना. आंचल को शुरुआत में ही आभास हो गया था कि मीनू मंजय के संपर्क में रह कर दिमाग से पैदल हो चली है. तभी अपने और मिनू के घर वालों की जानकारी में रख कर अपने संबंध खत्म कर लेने चाहिए थे. पढ़ाई की बात देती, बोल देती अब मैं फोन पर दिन में 10 minutes से ज्यादा समय व्यतीत नहीं करती. आंचल अपने माता पिता को तो कॉल रिकॉर्ड तो दिखा सकती थी. वो मीनू के माता पिता को उन्हीं के स्तर पर अच्छे से सुना देते और अपनी बेटी आंचल पर गर्व करते
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    Ravendra Yadav
    26 ऑगस्ट 2019
    बहुत अच्छा लिखा है @वंदना जी पर एक कि जगह 2 पार्ट में लिखते इसे तो ज्यादा अच्छा लगता...