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बुधवा- नाला नाला ज़िन्दगी

4.4
1907

“रे बुधवा…तेरा बाप फंस गया। दौड़, जल्दी दौड़। मैं बाकियों को बुला के आता। रे बावले खड़ा क्यूं है? भाग तेजी से।”    मोहल्ले के उस आदमी की आवाज़ सुनकर, बुधवा का मन घबड़ा उठा। उसने एकदम से कुछ सोचा, मन ही मन ...

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लेखक-वेखक

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    M Lata Tripathi
    27 सितम्बर 2020
    marmik satya ujagar karti sarthak kahani.
  • author
    mahesh tando
    19 जुलाई 2020
    यही नियति है गरीब की, वास्तविकता का सही चित्रण
  • author
    18 जुलाई 2020
    अच्छी रचना, एक कटु सत्य मलिन बस्ती वालों के जीवन का
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    M Lata Tripathi
    27 सितम्बर 2020
    marmik satya ujagar karti sarthak kahani.
  • author
    mahesh tando
    19 जुलाई 2020
    यही नियति है गरीब की, वास्तविकता का सही चित्रण
  • author
    18 जुलाई 2020
    अच्छी रचना, एक कटु सत्य मलिन बस्ती वालों के जीवन का