पथराई सी आंखों में, सपनों का पतझड़ था। दीखे दुनिया सारी,चश्मा आंँखों पर अड़ा था। दूर हुए सूखे पेड़ों से, जलता उसका चूल्हा। दे सूखी टहनी को, इस बूढ़ी को भूला। बियाबान सूने जंगल में, मरियल सी आवाज। जेठ ...
आदरणीय कविवर -- बहुत ही मर्मस्पर्शी जीवन चित्र -- मैं भी कभी कभी एक वृद्धा माँ को इसी तरह जेठ की दुपहरी में कुछ सामान बेचते देखती हूँ तो उनकी उम्र की थकावट उनके चेहरे पर देख कर करुणा से भर जाती हूँ | मन को छूती है आपकी रचना \ सादर --
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आदरणीय कविवर -- बहुत ही मर्मस्पर्शी जीवन चित्र -- मैं भी कभी कभी एक वृद्धा माँ को इसी तरह जेठ की दुपहरी में कुछ सामान बेचते देखती हूँ तो उनकी उम्र की थकावट उनके चेहरे पर देख कर करुणा से भर जाती हूँ | मन को छूती है आपकी रचना \ सादर --
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