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बूढ़ी औरत

4.8
30

पथराई सी आंखों में, सपनों का पतझड़ था। दीखे दुनिया सारी,चश्मा आंँखों पर अड़ा था। दूर हुए सूखे पेड़ों से, जलता उसका चूल्हा। दे सूखी टहनी को, इस बूढ़ी को भूला। बियाबान सूने जंगल में, मरियल सी आवाज। जेठ ...

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लेखक के बारे में
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kuldeep singh
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Renu
    27 मार्च 2019
    आदरणीय कविवर -- बहुत ही मर्मस्पर्शी जीवन चित्र -- मैं भी कभी कभी एक वृद्धा माँ को इसी तरह जेठ की दुपहरी में कुछ सामान बेचते देखती हूँ तो उनकी उम्र की थकावट उनके चेहरे पर देख कर करुणा से भर जाती हूँ | मन को छूती है आपकी रचना \ सादर --
  • author
    Sandeep Sahu
    26 मार्च 2019
    👌👌👌👌👌
  • author
    मल्हार
    26 मार्च 2019
    👏👏👏👏👏💐💐💐👌👌👌👌👌🙏🙏🙏
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  • author
    Renu
    27 मार्च 2019
    आदरणीय कविवर -- बहुत ही मर्मस्पर्शी जीवन चित्र -- मैं भी कभी कभी एक वृद्धा माँ को इसी तरह जेठ की दुपहरी में कुछ सामान बेचते देखती हूँ तो उनकी उम्र की थकावट उनके चेहरे पर देख कर करुणा से भर जाती हूँ | मन को छूती है आपकी रचना \ सादर --
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    Sandeep Sahu
    26 मार्च 2019
    👌👌👌👌👌
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    मल्हार
    26 मार्च 2019
    👏👏👏👏👏💐💐💐👌👌👌👌👌🙏🙏🙏