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बुढ़ापा

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आवे इंद्रिय  शिथिलता, बीमारी ले घेर। बचता  इससे  कौंन हैं, आवे देर सबेर।। आवे  देर  सबेर , बुढा़पा  दस्तक  देता। आगे पीछे सभी, गणित पूरा कर लेता।। हाथरसी कवि कहे,यहीं पे सब दिखलावे। नरक स्वर्ग को ...

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लेखक के बारे में

मेरा परिचय नाम- दुर्गा प्रसाद पिता - श्री कुन्दन लाल मां - श्रीमती महादेवी जन्मस्थान - गांव सेदरिया,पत्रालय-महरारा, जिला-हाथरस (उप्र) शिक्षा - बीए,एल एल बी केन्द्रीय सरकार से सेवानिवृत्त होने के बाद हिन्दी साहित्य में जो रुचि थी उसे लेखन के जरिए प्रतिलिपि पटल पर उजागर किया। प्रकाशित रचनाएं-किसान, पूर्व जन्म में लिया गया क़र्ज़, परवरिश, क्या पता था ? पहला सावन, चौधरी,गरीब का बेटा

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Niharika Goswami
    27 अगस्त 2020
    ek dam Sahi kaha sir bahut achha likha he sir aap ne👌👌👌👌👌👌
  • author
    Ambika Jha
    27 अगस्त 2020
    बहुत ही शानदार और सार्थक रचना 👌👌👌👍👍💐💐💐💐🌟🌟🌟🌟🌟💐💐🙏🙏💐💐
  • author
    हरि ओम शर्मा
    27 अगस्त 2020
    The universal truth. Well written. 👍👍
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    Niharika Goswami
    27 अगस्त 2020
    ek dam Sahi kaha sir bahut achha likha he sir aap ne👌👌👌👌👌👌
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    Ambika Jha
    27 अगस्त 2020
    बहुत ही शानदार और सार्थक रचना 👌👌👌👍👍💐💐💐💐🌟🌟🌟🌟🌟💐💐🙏🙏💐💐
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    हरि ओम शर्मा
    27 अगस्त 2020
    The universal truth. Well written. 👍👍