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ब्रह्मप्रेतों का अति खौफनाक कृत्य

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कुछ अपने आपको ज्ञानी-विज्ञानी मानने वाले कहते हैं कि भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी, जिन्न आदि बस कहानियों में ही अच्छे लगते हैं, इनका कोई अस्तित्व नहीं। पर मेरा मानना है कि पृथ्वी पर अनेकानेक रूपों ...

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लेखक के बारे में

प्रभाकर पाण्डेय जन्मतिथि :०१-०१-१९७६ जन्म-स्थान :गोपालपुर, पथरदेवा, देवरिया (उत्तरप्रदेश) शिक्षा :एम.ए (हिन्दी), एम. ए. (भाषाविज्ञान)  पिछले 18-19 सालों से हिन्दी की सेवा में तत्पर। पूर्व शोध सहायक (Research Associate), भाषाविद् के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मुम्बई के संगणक एवं अभियांत्रिकी विभाग में भाषा और कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य। कई शोध-प्रपत्र राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत। वर्तमान में सी-डैक मुख्यालय, पुणे में कार्यरत। विभिन्न हिंदी, भोजपुरी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन।

समीक्षा
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    Rahul Dwivedi Rahul Dwivedi
    26 जानेवारी 2019
    प्रभाकर पाण्डेय जी आपकी और कोई अन्य कहानी मैंने नहीं पढ़ी है लेकिन आज आपकी कहानी "ब्रह्मप्रेतो का अति खौफ़नाक कृत्य" को पढ़ा तो लगा कि दुनिया भले ही चांद पर पहुंच गई हो लेकिन दुनिया रहती तो पृथ्वी पर ही ।किसी भी इंसान की अकाल मृत्यु हो जाए तो वह अपने कर्म के अनुसार प्रेत योनि में प्रवेश करा दिया जाता है और आत्मा को तब तक भटकना पड़ता है जब तक कि उसकी उम्र पूरी नहीं हो जाती । दूसरी बात यह है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी पापी होगा शराबी, जुआरी,चोर,बदमाश, पथभ्रष्ट,भले ही हो गया हो यदि वो ब्राह्मण कुल का है ब्राह्मण के घर जन्म लिया है।यदि उसकी अकाल मौत होती है या किसी अन्य जाति धर्म के लोगों के द्वारा ब्राह्मण को मार दिया गया हो तो उसे ब्रह्महत्या का दोष लगने के साथ ही ब्रह्म प्रेतों का आतंक झेलना पड़ता है और यह बात को जनता है वो मानता है। गांव में ब्रह्म प्रेतों को बरम भी कहा जाता है । जय हो दादा परशुराम जी की ।
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    प्रकाश शर्मा
    25 जानेवारी 2019
    अच्छा लिखा है। मरने के बाद भ्रष्टाचारियों को खत्म किये बिना मैं भी परलोक नहीं जाने वाला। जिन्हें मैं पहचानता हूँ, वे तो गए समझो।
  • author
    सत्य मिश्रा
    18 जुन 2018
    बहुत अच्छी कहानी। कृपया मेरी रचनाएँ मौत का हाइवे और पोस्टमार्टम हाउस भी पढ़े
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    Rahul Dwivedi Rahul Dwivedi
    26 जानेवारी 2019
    प्रभाकर पाण्डेय जी आपकी और कोई अन्य कहानी मैंने नहीं पढ़ी है लेकिन आज आपकी कहानी "ब्रह्मप्रेतो का अति खौफ़नाक कृत्य" को पढ़ा तो लगा कि दुनिया भले ही चांद पर पहुंच गई हो लेकिन दुनिया रहती तो पृथ्वी पर ही ।किसी भी इंसान की अकाल मृत्यु हो जाए तो वह अपने कर्म के अनुसार प्रेत योनि में प्रवेश करा दिया जाता है और आत्मा को तब तक भटकना पड़ता है जब तक कि उसकी उम्र पूरी नहीं हो जाती । दूसरी बात यह है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी पापी होगा शराबी, जुआरी,चोर,बदमाश, पथभ्रष्ट,भले ही हो गया हो यदि वो ब्राह्मण कुल का है ब्राह्मण के घर जन्म लिया है।यदि उसकी अकाल मौत होती है या किसी अन्य जाति धर्म के लोगों के द्वारा ब्राह्मण को मार दिया गया हो तो उसे ब्रह्महत्या का दोष लगने के साथ ही ब्रह्म प्रेतों का आतंक झेलना पड़ता है और यह बात को जनता है वो मानता है। गांव में ब्रह्म प्रेतों को बरम भी कहा जाता है । जय हो दादा परशुराम जी की ।
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    प्रकाश शर्मा
    25 जानेवारी 2019
    अच्छा लिखा है। मरने के बाद भ्रष्टाचारियों को खत्म किये बिना मैं भी परलोक नहीं जाने वाला। जिन्हें मैं पहचानता हूँ, वे तो गए समझो।
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    सत्य मिश्रा
    18 जुन 2018
    बहुत अच्छी कहानी। कृपया मेरी रचनाएँ मौत का हाइवे और पोस्टमार्टम हाउस भी पढ़े