अलविदा कैसे कहूं तुम्हें...
२०२४....
लेकर चले गए
तुम संग अपने
मेरे जनक को...!
जो मेरी बात मेरे बिन कहे समझ जाते थे ।
मेरे चेहरे पर हंसी मन की उदासी समझ जाते थे
मेहमान के आने पर सबसे पहले मेरे कमरे मे मेरे द्वारा बनाई गई पेंटिंग और मेरी खूबियां बताते थे
बिना कहे हमेशा नये उपहार अपनी लाडो के लेकर आते थे...
जो मेरे देर तक सोने पर मुझे
प्यार से बाईसा कह कर उठाते थे।
मेरी प्यारी सखी जैसे मेरी हर बात ध्यान से सुनते और समझ जाते थे।
घंटो घंटो तक मुझसे बात करके
होशियार बेटा कहकर पुकारते थे।
वह दिन बहुत याद आते हैं
जिसमें बड़े भैया आपको सेठ जी कहकर कर पुकारते थे।
मुनीमों को किराने के समान के लिए ₹100 की जगह हजार देते थे।
मन में कितनी ही टेंशन हो फिर भी चेहरे पर मुस्कान रखते थे। बहुत कोशिश की मैंने...
कभी चित्तौड़ तो कभी उदयपुर पर..
मैं चाहते हुए भी आपके लिएकुछ नहीं कर पाई।
देकर चले तुम
मेरे जेहन में
ना भूल पाने वाली टीस..
अचानक से गहरी नींद में भी जगा देती है...
आपकी स्मृति में अभी लिखते हुए मेरी आंखों से आसू नहीं रुक रहे और गला रुन्ध सा जा रहा है..
इसीलिए इसलिए मेरी गट्टू के सामने,...
जल्दी से आंसू पहुंच कर चेहरे पर हंसी ला देती हूं।
अपना गम मै अपने तक
सिमेटे रखती हूं।
मां पर किसी बात पर गुस्सा होने पर आप..
थोड़ी देर बाद सॉरी बोल के माफी मांगना ।
हर घंटे -घंटे में आने वाले के साथ चाय बनाने का मां को आर्डर देना
जीवन की अंतिम सांस तक
जो हर दिन ब्रह्म मुहूर्त में
झकझोर जाती हे नींद से मुझे ..
अलविदा कैसे कहूं तुमको
तुम्हें तो दिल के पन्नों में,
मन के मासूम दिल में
सदा महफूज रखूंगी
यादों में संजोए रखूंगी
16 अक्टूबर 2024 के रूप में !!!
कैसे कहूं तुम्हें अलविदा..!
जिया (जया) त्रिपाठी
१. जनवरी.२०२५
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