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हिन्दी

ब्रह्म का स्वांग

4.6
10781

स्त्री - मैं वास्तव में अभागिन हूँ, नहीं तो क्या मुझे नित्य ऐसे-ऐसे घृणित दृश्य देखने पड़ते ! शोक की बात यह है कि वे मुझे केवल देखने ही नहीं पड़ते, वरन् दुर्भाग्य ने उन्हें मेरे जीवन का मुख्य भाग बना ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • author
    jaswant dronawat
    09 जून 2019
    जिस के हाथ में सत्ता और प्रचार, धन होता है, वह इस धरती पर ईश्वर का रूप ही है, बाकीसब बेबस, कमजोर, निकम्मे और भाग्यहीन। सब इमारतों, गाड़ियों, विदेश में पढ़ रही संतान की ही ओर दृष्टि रखते हैं काश बिकाऊ पत्रकार ऐसे लेख की ओर धयान दे पाते।
  • author
    Arti Saini
    03 जून 2018
    आज कल सब स्वांग ही तो करते है।जैसी ज़रूरत होती है अपने आदर्शों को तोड़ मरोड़ लेते हैं। 👌👌👌👌👍
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    04 अगस्त 2019
    बुद्धिजीवी ब्रह्म की भी व्याख्या अपने ढंग से करके जनमानस को यथार्थ से डिगाने का प्रयास करने में संकोच नहीं करते । सुन्दर कहानी ।
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    jaswant dronawat
    09 जून 2019
    जिस के हाथ में सत्ता और प्रचार, धन होता है, वह इस धरती पर ईश्वर का रूप ही है, बाकीसब बेबस, कमजोर, निकम्मे और भाग्यहीन। सब इमारतों, गाड़ियों, विदेश में पढ़ रही संतान की ही ओर दृष्टि रखते हैं काश बिकाऊ पत्रकार ऐसे लेख की ओर धयान दे पाते।
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    Arti Saini
    03 जून 2018
    आज कल सब स्वांग ही तो करते है।जैसी ज़रूरत होती है अपने आदर्शों को तोड़ मरोड़ लेते हैं। 👌👌👌👌👍
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    अरविन्द सिन्हा
    04 अगस्त 2019
    बुद्धिजीवी ब्रह्म की भी व्याख्या अपने ढंग से करके जनमानस को यथार्थ से डिगाने का प्रयास करने में संकोच नहीं करते । सुन्दर कहानी ।