pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

बिना मंजिल की राह..

5
56

पता ही नहीं, मैं कौन सी  राहों पे चलके आ गई, जहाँ कोई मंजिल ही नहीं थी.. बारिशें तो हो रही थी, पर प्यास बुजाने का पानी नहीं था, पता ही नहीं, मैं कौन सी राहो पे... ढूंढ रही थी उसे में, की कही वो नजर ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Ekta Chauhan

કાન્હા ની મીરાં.. દુનિયાની રીતભાત ને જાણતી, છતાં અજાણ.. ભીડમાં પણ એકલી ફરતી..એવી એક મીરાં..

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Tarak
    28 जून 2020
    ખુબ જ સરસ
  • author
    પંકજ જાની
    14 जून 2020
    સરસ
  • author
    Joker
    14 जून 2020
    very nice
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Tarak
    28 जून 2020
    ખુબ જ સરસ
  • author
    પંકજ જાની
    14 जून 2020
    સરસ
  • author
    Joker
    14 जून 2020
    very nice