पता ही नहीं, मैं कौन सी राहों पे चलके आ गई, जहाँ कोई मंजिल ही नहीं थी.. बारिशें तो हो रही थी, पर प्यास बुजाने का पानी नहीं था, पता ही नहीं, मैं कौन सी राहो पे... ढूंढ रही थी उसे में, की कही वो नजर ...
पता ही नहीं, मैं कौन सी राहों पे चलके आ गई, जहाँ कोई मंजिल ही नहीं थी.. बारिशें तो हो रही थी, पर प्यास बुजाने का पानी नहीं था, पता ही नहीं, मैं कौन सी राहो पे... ढूंढ रही थी उसे में, की कही वो नजर ...