मेरी ये रचना सलीम खान से प्रेरित है क्योंकि जैसा वो लिखते है बस उसी अंदाज में मुझे भी लिखने की आदत है तो बस उनकी ही अधूरी रचना को आगे बढाने के लिए मेने भी एक प्रयास किया और वर्तमान परिदृश्य को ...
उत्कृष्ट रचना श्रीमान ।आपने इस रचना में जिन मुख्य बिंदुओं को उतारा है वो वाक़ई में काबिले तारीफ है ;बेशक हमारे लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ कागज के रंगीन के टुकड़ो के मायाजाल में आ चुकी है ।आपने इस रचना के माध्यम से उन पर चोट भी की है ।ओजस्व लेखनी ।।
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ऐसा ही होता जब हम देश के लिए कोई अच्छे व्यक्तिक्त को चुनते तो बह भी कुर्सी बचाने सत्ता बचाने मे भ्रष्ट हो जाता अपना ईमान बेच देता देश को दाँव पर लगा देता सत्ता पर काबिज होते साथ पागल हो जाता कुर्सी बचाने के चक्कर मे भ्रिमित हो जाता जवानो की गर्दन कट बाने के बाद शर्म नाम की कोई चीज नही रहती जब जनता जनार्दन उन्हैं सीट फर से उतार देती तब शायद अपनी गलती समझें
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एक जमाना था जब बाबा खुद न्यूज़ चलाते थे अब जमाना है बाबा कहते न्यूज से सबसे ज्यादा बच्चे बिगड़ते हैं सच है चैनल अब आम जनता की नहीं है टीआरपी के भूखे न्यूज़ चैनल आतंकवादी और नेताओं की बन कर रह गई बहुत सही लिखा है आपने
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