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बाल कहानी / भुलक्कड़ मामा

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// भुलक्कड़ मामा // हर बार की तरह इस बार भी अमर अपने माता-पिता और छोटी बहन के साथ होली का त्यौहार मनाने अपने गाँव राजपुर पहुँचा। उसे गाँव की होली बहुत अच्छी लगती थी। अमर के पिताजी शहर में नौकरी ...

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लेखक के बारे में

पढ़ना मेरी आदत में शामिल है, जबकि लिखना महज शौक है। शिक्षा :- एम.ए. (हिन्दी साहित्य, राजनीति विज्ञान, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब.आई.एस-सी., (सभी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण) पीएच.डी., C.G. T.E.T., U.G.C. N.E.T. प्रसारण/प्रकाशन :- 1. आकाशवाणी केन्द्र, रायगढ़ (छ.ग.) में युववाणी तथा किसानवाणी कम्पीयर के रूप में चार सौ से अधिक नियमित कार्यक्रम, धारावाहिक, दर्जनों भेंटवार्ता तथा जीवंत फोन-इन-कार्यक्रम का संचालन/प्रसारण। 2. मासिक कल्याण, गीता प्रेस गोरखपुर; मासिक साहित्य अमृत, नईदिल्ली; मासिक शुभ तारिका, अबाला छावनी हरियाणा; मासिक गुड़िया, नई दिल्ली; त्रैमासिक अविराम साहित्यिकी, मासिक शब्दकार, मासिक चकमक, भोपाल; मासिक नूतन कहानियाँ, प्रयागराज; मासिक समझ झरोखा, भोपाल; अर्धवार्षिक लघुकथा कलश, त्रैमासिक साहित्य कलश, त्रैमासिक दृष्टि, त्रैमासिक चिकिर्षा, खजूरी बाजार, इंदौर; मासिक प्राची, नई दिल्ली; मासिक प्रेरणा अंशु, मासिक ककसाड़, नई दिल्ली; मासिक वीणा, इंदौर; मासिक सरस्वती सुमन, मासिक दि अंडरलाइन, कानपुर; मासिक हिमप्रस्थ, शिमला; मासिक अट्टहास, मासिक अरण्यवाणी, मासिक सुवासित, मासिक शब्द्कार, मासिक अदम्य, मासिक जय विजय, मासिक सुरभि सलोनी, त्रैमासिक अनुगुंजन, मासिक शाश्वत सृजन, त्रैमासिक समहुत, मासिक स्वर्णवाणी, मासिक रचना उत्सव, प्रयागराज; मासिक सत्य की मशाल, भोपाल; मासिक शब्द गुंजन, त्रैमासिक सर्वभाषा, नईदिल्ली; 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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Asha Shukla ""Asha""
    08 ଡିସେମ୍ବର 2018
    बहुत जीवंत कहानी, गाँव की होली का दृश्य आँखों के सामने सजीव हो उठा
  • author
    CB Choudhary
    14 ଫେବୃୟାରୀ 2019
    कहानी को अंत में आप ऊसी सीख की और ले गये जो आप वास्तव में सिखाना चाहते थे, सही है भुल्लकड़ आदमी कभी कभी बेहद बड़ी समस्याओं को भी न्यौता दे दिया करते है। ईसी भूलने की आदत स्वरूप 2007 की बात है मैं घर से आधा किलोमीटर दूर एक शोप पर साईकिल लेकर कुछ सामान लेने गया था और वापस आते समय साईकिल वंही भूलकर किसी दोस्त के साथ पैदल पैदल ही घर आ गया शाम को मैन गेट पर ताला लगाते समय याद आया कि साईकिल तो मैं शोप पर ही छोड़ आया था। एसा ही एक किस्सा और है, एक बार स्टोव पर चाय चढाकर , जल्दबाजी में कोचिंग निकल गया, आधे रास्ते में मकान मालिक का काल आया कि चन्द्रभान नीचे घर में धुंआ धुंआ फैल रखा है , बीच रास्ते से वापस आया तब तक चाय पंचतत्व में विलीन हो चुकी थी, अच्छा हुअा कि कोई गैस हादसा न हुआ। यह भूलने की बिमारी बड़ी खतरनाक होती है।
  • author
    Sunil Kumar Sinha
    24 ସେପ୍ଟେମ୍ବର 2022
    बहुत ही अच्छी रचना । बचपन की याद ताज़ा हो गया ।
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    Asha Shukla ""Asha""
    08 ଡିସେମ୍ବର 2018
    बहुत जीवंत कहानी, गाँव की होली का दृश्य आँखों के सामने सजीव हो उठा
  • author
    CB Choudhary
    14 ଫେବୃୟାରୀ 2019
    कहानी को अंत में आप ऊसी सीख की और ले गये जो आप वास्तव में सिखाना चाहते थे, सही है भुल्लकड़ आदमी कभी कभी बेहद बड़ी समस्याओं को भी न्यौता दे दिया करते है। ईसी भूलने की आदत स्वरूप 2007 की बात है मैं घर से आधा किलोमीटर दूर एक शोप पर साईकिल लेकर कुछ सामान लेने गया था और वापस आते समय साईकिल वंही भूलकर किसी दोस्त के साथ पैदल पैदल ही घर आ गया शाम को मैन गेट पर ताला लगाते समय याद आया कि साईकिल तो मैं शोप पर ही छोड़ आया था। एसा ही एक किस्सा और है, एक बार स्टोव पर चाय चढाकर , जल्दबाजी में कोचिंग निकल गया, आधे रास्ते में मकान मालिक का काल आया कि चन्द्रभान नीचे घर में धुंआ धुंआ फैल रखा है , बीच रास्ते से वापस आया तब तक चाय पंचतत्व में विलीन हो चुकी थी, अच्छा हुअा कि कोई गैस हादसा न हुआ। यह भूलने की बिमारी बड़ी खतरनाक होती है।
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    Sunil Kumar Sinha
    24 ସେପ୍ଟେମ୍ବର 2022
    बहुत ही अच्छी रचना । बचपन की याद ताज़ा हो गया ।