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भूकंप

4.5
6726

अभी वह ऑफिस जाने की तैयारी में लगा ही था कि सहसा बदहवास सी पत्नी कमरे में आई,"जल्दी बाहर निकलिए...। बिलकुल भी अहसास नहीं हो रहा क्या...भूकंप आ रहा । चलिए तुरंत...।" वो उसकी बाँह पकड़ कर लगभग खींचती ...

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लेखक के बारे में

31 अक्टूबर को कानपुर में जन्मी प्रियंका गुप्ता ने छह सात साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था | प्रारम्भिक रूप से बालकथाएं लिखने वाली प्रियंका के चार बालकथा संग्रह हैं, जिनमे से दो पुरस्कृत हैं| बड़ी कहानियों के एकल संग्रह के रूप में दो कथा संग्रह-ज़िंदगी बाकी है; और बुरी लड़की- प्रकाशित हो चुके हैं | कहानियों के अलावा प्रियंका ने कविता, लघुकथा, हाइकु आदि विधाओं में भी काफी कुछ लिखा है |

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rohitash Goenka
    28 फ़रवरी 2022
    बेहतरीन रचना है। हमारी संस्कृति को हमने ही समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाया है। पाश्चात्य सभ्यता अपना ने का प्रभाव है।दोश किसे दें आज हम टीवी, मीडिया सब जगह यही दिखा रहे हैं। जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।सच्च ही कहा है बोएं पेड़ बबूल का तो आम कहां से खायेंगे।
  • author
    27 अक्टूबर 2020
    जिस माता पिता ने कई सालों तक अपने बच्चों के लिए हर गंदगी का काम बिना सोचे समझे ये बोल के करते हैं कि कोई बात नहीं सभी करते हैं जब वो परिस्थितियों में वे ही बच्चे उनसे परेशान हो जाते हैं 😗🤥
  • author
    Kamlesh Patni
    11 अक्टूबर 2020
    काश यह भूकंप हम सबकी तुच्छ मानसिकता बदलने में सहयोग कर सके।बढ़ते हुए वृद्धआश्रम तो यही दिखा रहे हैं कि अब वृद्ध लोगों की समाज में जगह ही नहीं वे भाग्यशाली हैं जो संतान के साथ रह पा रहे हैं।
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    Rohitash Goenka
    28 फ़रवरी 2022
    बेहतरीन रचना है। हमारी संस्कृति को हमने ही समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाया है। पाश्चात्य सभ्यता अपना ने का प्रभाव है।दोश किसे दें आज हम टीवी, मीडिया सब जगह यही दिखा रहे हैं। जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।सच्च ही कहा है बोएं पेड़ बबूल का तो आम कहां से खायेंगे।
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    27 अक्टूबर 2020
    जिस माता पिता ने कई सालों तक अपने बच्चों के लिए हर गंदगी का काम बिना सोचे समझे ये बोल के करते हैं कि कोई बात नहीं सभी करते हैं जब वो परिस्थितियों में वे ही बच्चे उनसे परेशान हो जाते हैं 😗🤥
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    Kamlesh Patni
    11 अक्टूबर 2020
    काश यह भूकंप हम सबकी तुच्छ मानसिकता बदलने में सहयोग कर सके।बढ़ते हुए वृद्धआश्रम तो यही दिखा रहे हैं कि अब वृद्ध लोगों की समाज में जगह ही नहीं वे भाग्यशाली हैं जो संतान के साथ रह पा रहे हैं।