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भीड़ में अकेला

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मैं बड़े शहर में रहता हुँ पर बहुत कुछ नहीं देखता माँ का साथ नहीं देखता पापा की बात नहीं देखता किसी के बातों में भरोसा नहीं देखता किसी के दस से कम चहरे नहीं देखता औऱ कभी भी  खुद को मजबूत नहीं देखता मै ...

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लेखक के बारे में
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Rahul Kumar
समीक्षा
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  • author
    Aditya Rai
    11 नवम्बर 2019
    बहुत सुंदर तुलना।
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    Aditya Rai
    11 नवम्बर 2019
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