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भीड़ में खोया आदमी

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आज आदमीं इतनें दबाव में है कि उसकी हँसी-खुशी कहीं खो गईं हैं।

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लेखक के बारे में
author
mukesh kumaru

लेखनी चला कर लिखने की कोशिश करता हूँ मन के भाव कागज़ पर उतर कब जाते है पता ही नहीं चलता। कुछ लोगों से पता चला कि मैं कविता लिखने लगा हूँ ।। स्नातकोत्तर ( हिन्दी, राजनीति विज्ञान) विश्वविधालय अनुदान आयोग-सहायक प्राध्यापक परीक्षा जुलाई-2016 हिन्दी विषय से उतीर्ण बी एड ( दिल्ली विश्वविद्यालय) वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में अंशकालिक सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। लेखन कार्य विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबारों में लेख। राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका सुमन सौरभ में निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित। प्रतिलिपि संस्था ने 250 लेखकों में चयन और प्रोत्साहन के लिए चुना। दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1 सतरंगी सपने (काव्य संग्रह ) जनवरी-2019 2 पलाश के फूल (काव्य संग्रह ) अगस्त-2019

समीक्षा
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  • author
    kumar gupta
    21 जनवरी 2019
    हम खुश रहेंगे तो जग खुशहाल दिखेगा और उदास रहने पर चारो तरफ उदासी ।
  • author
    कमल कांत
    21 जनवरी 2019
    खुशी बाहर ढूँढ़ने की मूर्खता में हुआ है यह हाल ।
  • author
    अनुराधा चौहान
    21 जनवरी 2019
    बहुत सुंदर 👌
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    kumar gupta
    21 जनवरी 2019
    हम खुश रहेंगे तो जग खुशहाल दिखेगा और उदास रहने पर चारो तरफ उदासी ।
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    कमल कांत
    21 जनवरी 2019
    खुशी बाहर ढूँढ़ने की मूर्खता में हुआ है यह हाल ।
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    अनुराधा चौहान
    21 जनवरी 2019
    बहुत सुंदर 👌