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भरवां भिंडी और करेले

4.5
1802

अकेली औरत पीछे लौटती है , बीसियों साल पहले के मौसम में जब वह अकेली नही थी , सुबह से फिरकनी की तरह घर में घूमने लगती थी , इसके लिए जूस , उसके लिए शहद नीबू , पलंग पर पड़ी बीमार सास तिपाई पर रखी उसकी ...

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लेखक के बारे में
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सुधा अरोड़ा

जन्म - अविभाजित लाहौर (अब पष्चिमी पाकिस्तान) में 4 अक्टूबर 1946। 1947 में कलकत्ता । षिक्षा - स्कूल से लेकर एम.ए. तक की षिक्षा कलकत्ता में । 1962 में श्री शिक्षायतन स्कूल से प्रथम श्रेणी में हायर सेकेण्डरी । 1965 में श्री शिक्षायतन काॅलेज से बी.ए.आॅनर्स और 1967 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी साहित्य) गोल्ड मेडलिस्ट। दोनों बार प्रथम श्रेणी में प्रथम । कार्यक्षेत्र - 1965 -1967 तक कलकत्ता विष्वविद्यालय की पत्रिका ‘‘प्रक्रिया’’ का संपादन . 1969 से 1971 तक कलकत्ता के दो डिग्री काॅलेजों -- श्री शिक्षायतन और आशुतोष काॅलेज के प्रातःकालीन महिला विभाग जोगमाया देवी काॅलेज में अध्यापन . 1977 - 1978 के दौरान कमलेश्वर के संपादन में ‘कथायात्रा’ में सहयोगी संपादक . 1993 - 1999 तक महिला संगठन ‘‘हेल्प’’ से संबद्ध . कई कार्यशालाओं में भागीदारी , सम्प्रति - मुंबई में स्वतंत्र लेखन प्रकाशन - पहली प्रकाषित कहानी ‘मरी हुई चीज़’ ज्ञानोदय सितम्बर 1965 में । पहली लिखित कहानी ‘एक सेंटीमेंटल डायरी की मौत‘ सारिका मार्च 1966 में प्रकाशित । पहला कहानी संग्रह ‘‘बग़ैर तराशे हुए’’- 1967 । कहानी संग्रह - ऽ बगैर तराशे हुए (1967) - लोकभारती प्रकाषन , इलाहाबाद ऽ यु़द्धविराम (1977) - छह लंबी कहानियां - पराग प्रकाषन , दिल्ली ऽ महानगर की मैथिली ( 1987 ) – नेशनल पब्लिशिग हाउस , दिल्ली ऽ काला शुक्रवार ( 2004 ) - राजकमल प्रकाशन , दिल्ली ऽ कांसे का गिलास ( 2004 ) - पांच लंबी कहानियां - आधार प्रकाशन , पंचकूला , हरियाणा ऽ मेरी तेरह कहानियां ( 2005 ) – अभिरुचि प्रकाशन , दिल्ली ऽ रहोगी तुम वही ( 2007 ) - रे माधव प्रकाशन , दिल्ली ऽ 21 श्रेष्ठ कहानियां ( 2009 ) - डायमंड बुक्स , दिल्ली ऽ एक औरत: तीन बटा चार ( 2011 ) - बोधि प्रकाशन , जयपुर ऽ मेरी प्रिय कथाएं ( 2012 ) - ज्योतिपर्व प्रकाशन , दिल्ली ऽ 10 प्रतिनिधि कहानियां ( 2013 ) - किताबघर प्रकाशन , दिल्ली ऽ अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी ( 2014 ) - साहित्य भंडार , इलाहाबाद उपन्यास - ऽ यहीं कहीं था घर (2010) - सामयिक प्रकाशन , दिल्ली कविता संकलन - ऽ रचेंगे हम साझा इतिहास ( 2012 ) - मेधा प्रकाशन , दिल्ली ऽ कम से कम एक दरवाज़ा ( 2015 ) - बोधि प्रकाषन , जयपुर स्त्री विमर्ष - ऽ आम औरत: जि़न्दा सवाल ‘ ( 2008 ) - सामयिक प्रकाषन , दिल्ली ऽ एक औरत की नोटबुक ( 2010 ) - मानव प्रकाषन , कोलकाता ऽ एक औरत की नोटबुक ( 2015 ) - राजकमल प्रकाशन , नई दिल्ली एकांकी - आॅड मैन आउट उर्फ बिरादरी बाहर (2011) - राजकमल प्रकाशन , दिल्ली संपादन - औरत की कहानी (2008) - भारतीय ज्ञानपीठ , दिल्ली भारतीय महिला कलाकारों के आत्मकथ्यों के दो संकलन - ’दहलीज़ को लांघते हुए‘ और ’पंखों की उड़ान ‘- स्पैरो , मुंबई ( ैवनदक ंदक च्पबजनतम ।तबीपअमे वित त्मेमंतबी वद ॅवउमद ) मन्नू भंडारी: सृजन के शिखर (2010) - किताबघर प्रकाशन , दिल्ली मन्नू भंडारी का रचनात्मक अवदान (2012) - किताबघर प्रकाशन , दिल्ली स्त्री संवेदनाः विमर्ष के निकष - खंड एक और दो (2015) - साहित्य भंडार , इलाहाबाद ऽ औरत की दुनिया: जंग जारी है .... आत्मसंघर्ष कथाएं (शीघ्र प्रकाष्य ) ऽ औरत की दुनिया: हमारी विरासत: पिछली पीढ़ी की औरतें (शीघ्र प्रकाष्य ) अनुवाद - ऽ कहानियां लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी , फ्रंेच, पोलिश, चेक, जापानी, डच, जर्मन, इतालवी तथा ताजिकी भाषाओं में अनूदित और इन भाशाओं के संकलनों में प्रकाशित । ऽ रहोगी तुम वही (2008-उर्दू भाषा में) (किताबदार , मुंबई ) ऽ उंबरठ्याच्या अल्याड पल्याड-(मनोविकास प्रकाशन , पुणे , महाराष्ट्र) (2012 -स्त्री विमर्ष पर आलेखों का संकलन मराठी भाशा में ) ऽ वेख धीयां दे लेख - यहीं कहीं था घर उपन्यास का पंजाबी अनुवाद टेलीफिल्म - सुधा जी की कहानियों ‘युद्धविराम’ , ‘दहलीज़ पर संवाद’ , ‘इतिहास दोहराता है’ तथा ‘जानकीनामा’ पर मुंबई , लखनऊ तथा कोलकाता दूरदर्शन द्वारा लघु फिल्में निर्मित . दूरदर्शन के ‘समांतर’ कार्यक्रम के लिए कुछ लघु फिल्मों का निर्माण . फिल्म पटकथाओं (पटकथा-बवंडर), टी. वी. धारावाहिक और कई रेडियो नाटकों का लेखन । साक्षात्कार - उर्दू की प्रख्यात लेखिका इस्मत चुग़ताई , बंाग्ला की सम्मानित लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी ( नलिनी सिंह के कार्यक्रम ‘सच की परछाइयां ’ के लिए ) हिन्दी की प्रतिष्ठित लेखिका मन्नू भंडारी , लेखक भीष्म साहनी , राजेंद्र यादव , नाटककार लक्ष्मीनारायण लाल आदि रचनाकारों का कोलकाता दूरदर्शन के लिए साक्षात्कार । स्तंभ लेखन - ऽ सन् 1977-78 में पाक्षिक ‘सारिका’ में ‘आम आदमी: जिन्दा सवाल’ का नियमित लेखन ऽ सन् 1996-97 में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर एक वर्ष दैनिक अखबार ’जनसÙाा ‘ में महिलाओं के बीच लोकप्रिय साप्ताहिक काॅलम ’वामा ‘ । ऽ मार्च सन् 2004 से मार्च 2009 तक मासिक पत्रिका ‘ कथादेश ’ में ‘ औरत की दुनिया ’ स्तंभ बहुचर्चित ऽ अप्रैल 2013 से ‘कथादेष’ में ‘राख में दबी चिनगारी’ स्तंभ जारी । सम्मान - सन् 1978 में उत्त्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा विशेष पुरस्कार से सम्मानित . सन् 2008 का साहित्य क्षेत्र का भारत निर्माण सम्मान . सन् 2010 का प्रियदर्शिनी सम्मान . सन् 2011 का वीमेंस अचीवर अवाॅर्ड . सन् 2011 का केंद्रीय हिंदी निदेषालय का पुरस्कार सन् 2012 का महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का पुरस्कार . सन् 2014 का राजस्थान का वाग्मणि सम्मान

समीक्षा
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  • author
    Mahima Garg
    03 जनवरी 2017
    behad khubsurat
  • author
    Poonam Aggarwal
    20 अगस्त 2019
    एक औरत अपने को सम्पूर्ण अपने घर में ही पाती है । घर के छोटे मोटे काम करने में अपने अधूरेपन को भरती है ।गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि जब औरत मगन हो कर अपनी गृहस्थी के काम करती है तो उसकी देह से एक रागिनी सी फूटती है ।
  • author
    prabha malhotra
    08 सितम्बर 2018
    बहुत खूबसूरती से औरत की मनोदशा का चित्रण और वो भी सब्जियों के माध्यम से, साधुवाद, सरल शब्द परन्तु गंभीर अर्थ
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    Mahima Garg
    03 जनवरी 2017
    behad khubsurat
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    Poonam Aggarwal
    20 अगस्त 2019
    एक औरत अपने को सम्पूर्ण अपने घर में ही पाती है । घर के छोटे मोटे काम करने में अपने अधूरेपन को भरती है ।गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि जब औरत मगन हो कर अपनी गृहस्थी के काम करती है तो उसकी देह से एक रागिनी सी फूटती है ।
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    prabha malhotra
    08 सितम्बर 2018
    बहुत खूबसूरती से औरत की मनोदशा का चित्रण और वो भी सब्जियों के माध्यम से, साधुवाद, सरल शब्द परन्तु गंभीर अर्थ