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भारतीय गांव और अतिथि देवो भव 10/6/2022

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मेरी प्यारी सखी क्षमा प्रार्थी हूं कि कल तुमसे मिलने नहीं आ सकी। दरअसल काम के सिलसिले में एक जगह जाना पड़ा और वहां एक अन्य सहकर्मी के अकस्मात अवकाश पर जाने की वजह से बचा हुआ काम मुझे निपटाना पड़ गया। ...

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लेखक के बारे में
author
Shikha Kumar

बहुत कुछ सिखाया है तूने ए जिन्दगी, सफर अभी लेकिन 'जल' बाकी है, थक कर थोड़ा सुस्ताने लगी हूं बस, हौसलों में मेरे उड़ान अभी बाक़ी है। अंदाज़ से मुझे मापा मत कर तूं हमदम, मैं तो ठहर कर भी दरिया ही रहूंगी, छंद, काव्य, रसों का अस्वादन, भारी भरकम शब्द हैं, मैं तो बोलचाल की भाषा में ही अपनी बात कहूंगी, कवि और शायर तो आला लोग होते हैं, नपे तुले शब्दों में सटीक चित्रण कर पाते हैं, हमारी कहां बराबरी कवियों से, हमने तो बस जीवन के दुख फांके हैं। © शिखा कुमार 'जल' मौलिक, स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित (कृप्या इसे कॉपी न करें, कॉपीराइट अधिनियम के तहत सुरक्षित)

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Poonam Arora
    10 जून 2022
    wah bahut sunder aapke kaam ki bhi kuchh knowledge ho gayi----- nice Nice writing
  • author
    Alka Mathur
    10 जून 2022
    बहुत ही अच्छा लगा आपकी दिनचर्या और गांव के काम के बारे में पढ़ कर
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  • author
    Poonam Arora
    10 जून 2022
    wah bahut sunder aapke kaam ki bhi kuchh knowledge ho gayi----- nice Nice writing
  • author
    Alka Mathur
    10 जून 2022
    बहुत ही अच्छा लगा आपकी दिनचर्या और गांव के काम के बारे में पढ़ कर