बहुत कुछ सिखाया है तूने ए जिन्दगी, सफर अभी लेकिन 'जल' बाकी है,
थक कर थोड़ा सुस्ताने लगी हूं बस,
हौसलों में मेरे उड़ान अभी बाक़ी है।
अंदाज़ से मुझे मापा मत कर तूं हमदम,
मैं तो ठहर कर भी दरिया ही रहूंगी,
छंद, काव्य, रसों का अस्वादन, भारी भरकम शब्द हैं,
मैं तो बोलचाल की भाषा में ही अपनी बात कहूंगी,
कवि और शायर तो आला लोग होते हैं,
नपे तुले शब्दों में सटीक चित्रण कर पाते हैं,
हमारी कहां बराबरी कवियों से, हमने तो बस जीवन के दुख फांके हैं।
© शिखा कुमार 'जल'
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